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युआन की दहाड़

युआन का एसडीआर में आना महज वित्तीय घटना नहीं है, इससे ग्लोबल आर्थिक-राजनैतिक संतुलन में वे बड़े बदलाव शुरू होंगे जिनका आकलन वर्षों से हो रहा था.

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इक्कीसवीं सदी का इतिहास लिखते हुए यह जरूर दर्ज होगा कि चीन शायद उतनी तेजी से नहीं बदला जितनी तेजी से उसके बारे में दुनिया का नजरिया बदला. बात इसी सितंबर की है जब अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री सहित लगभग सभी ग्लोबल राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे लेकिन अहमियत रखने वाली निगाहें केवल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अमेरिका की यात्रा पर थीं, जो यह सुनिश्चित करने के लिए बीजिंग पहुंचे थे कि चीन की मुद्रा युआन (जिसे रेन्मिन्बी भी कहते हैं) को करेंसी के उस आभिजात्य क्लब में शामिल किया जाएगा जिसमें अब तक केवल अमेरिकी डॉलर,जापानी येन, ब्रिटिश पाउंड और यूरो को जगह मिली है. सितंबर में वाशिंगटन के कूटनीतिक गलियारों में तैरती रही यह मुहिम, बीते पखवाड़े बड़ी खबर बनी जब आइएमएफ ने ऐलान किया कि उसके विशेषज्ञ एसडीआर में युआन के प्रवेश पर राजी हैं. इसके साथ ही तय हो गया कि अक्तूबर 2016 में युआन को दुनिया की पांचवीं सबसे ताकतवर करेंसी बनाने की औपचारिकता पूरी हो जाएगी. एसडीआर में युआन के प्रवेश से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए ऐसी साख मिली है जिसका कोई सानी नहीं है.

विदेशी मुद्रा संकट में फंसे देशों के लिए आइएमएफ की मदद अंतिम सहारा होती है जो कि हाल में ग्रीस या यूरोप के अन्य संकटग्रस्त देशों को और 1991 में भारत को मिली थी. आइएमएफ के तहत एसडीआर यानी स्पेशल ड्राइंग राइट्स एक संकटकालीन व्यवस्था है. एसडीआर एक तरह की करेंसी है जो आइएमएफ के सदस्य देशों के विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से के तौर पर गिनी जाती है. संकट के समय इसके बदले आइएमएफ से संसाधन मिलते हैं. एसडीआर एक तकनीकी इंतजाम है जिसकी जरूरत दुर्भाग्य से ही पड़ती है लेकिन परोक्ष रूप से यह क्लब दरअसल दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडारों के गठन का आधार है. दुनिया के लगभग सभी देशों के विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर, येन, पाउंड और विदेशी मुद्रा क्लब विदेशी मुद्रा क्लब यूरो पर आधारित हैं, युआन अब इनमें पांचवीं करेंसी होगी.

एसडीआर ने 46 साल के इतिहास में बहुत कम सुर्खियां बटोरी हैं. इस दर्जे को पाने के लिए आइएमएफ की शर्तें इतनी कठिन हैं कि कोई देश इस तरफ देखता ही नहीं. 2001 में कई यूरोपीय मुद्राओं के विलय से बना यूरो इसका हिस्सा बना था. किसी मुद्रा के लिए आइएमएफ के मूल्यांकन की दो शर्तें हैं. पहली शर्त है कि इस मुद्रा को जारी करने वाला देश बड़ा निर्यातक होना चाहिए. विश्व निर्यात में 11 फीसदी हिस्से के साथ चीन इस पैमाने पर बड़ी ताकत है. निर्यात के पैमाने पर युआन डॉलर व यूरो के बाद तीसरे नंबर पर है, येन और पाउंड काफी पीछे हैं.

एसडीआर क्लब में सदस्यता की दूसरी शर्त है कि करेंसी का मुक्त रूप से इस्तेमाल हो सके. इस पैमाने पर चीन शायद खरा नहीं उतरता, क्योंकि युआन पर पाबंदियां आयद हैं और इसकी कीमत भी बाजार नहीं बल्कि सरकार तय करती है, लेकिन यह चीन का रसूख ही है कि आइएमएफ ने मुक्त करेंसी के पैमाने पर युआन के लिए परिभाषा बदली है. आइएमएफ का तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय विनिमय में युआन का हिस्सा काफी बड़ा है. 2014 में यह विभिन्न देशों के मुद्रा भंडारों में सातवीं सबसे बड़ी करेंसी थी. ग्लोबल करेंसी स्पॉट ट्रेडिंग में युआन 11वीं और बॉन्ड बाजारों में सातवीं सबसे बड़ी करेंसी है. यही वजह थी कि अपरिवर्तनीय होते हुए भी युआन को वह दर्जा मिल गया जो लगभग असंभव है.

युआन की यह ऊंचाई, बड़े विदेशी मुद्रा क्लब बदलाव लेकर आएगी. एसडीआर में पांचवीं करेंसी आने के साथ अगले कुछ महीनों में दुनिया के देश अपने विदेशी मुद्रा भंडारों का पुनर्गठन करेंगे और युआन का हिस्सा बढाएंगे. माना जा रहा है कि करीब एक ट्रिलियन डॉलर के अंतरराष्ट्रीय विदेशी मुद्रा भंडार युआन में बदले जाएंगे यानी कि डॉलर की तर्ज पर युआन की मांग भी बढ़ेगी. वल्र्ड बैंक का मानना है कि अगले पांच साल में दुनिया की कंपनियां बड़े पैमाने पर युआन केंद्रित बॉन्ड जारी करेंगी, जिन्हें वित्तीय बाजार 'पांडा बॉन्ड' कहता है. इनका आकार 50 अरब डॉलर तक जा सकता है जो वित्तीय बाजारों में इसकी हनक कई गुना बढ़ाएगा.

युआन ने खुद को ग्लोबल रिजर्व करेंसी बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिया है. ग्लोबल बाजारों में ब्रिटिश पाउंड का असर सीमित है, जापानी येन एक ढहती हुई करेंसी है और यूरो का भविष्य अस्थिर है. इसलिए अमेरिकी डॉलर और युआन शायद दुनिया की दो सबसे प्रमुख करेंसी होंगी. दरअसल, चीन चाहता भी यही था, इसलिए युआन का एसडीआर में आना केवल एक वित्तीय घटना नहीं है बल्कि इससे ग्लोबल आर्थिक-राजनैतिक संतुलन में वे बदलाव शुरू होंगे जिनका आकलन वर्षों से हो रहा था. दरअसल, यहां से दुनिया में डॉलर के एकाधिकार की उलटी गिनती पर बहस ज्यादा तथ्य और ठसक के साथ शुरू हो रही है, क्योंकि दुनिया के करीब 45 फीसदी अंतरदेशीय विनिमय अमेरिकी डॉलर में होते हैं जिसके लिए अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम की जरूरत होती है, जल्द ही इसका एक बड़ा हिस्सा युआन को मिलेगा.

चीन जिस ग्लोबल आर्थिक ताकत बनने के सफर पर है, उसमें युआन का यह दर्जा सबसे अहम पड़ाव है, लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि दरअसल चीन उतना नहीं बदला है जितना कि दुनिया का नजरिया चीन के प्रति बदल गया है. चीन में आज भी लोकतंत्र नहीं है और वित्तीय तंत्र पहले जैसा अपारदर्शी है फिर से दुनिया ने चीन की ताकत को भी स्वीकार कर लिया है. लेकिन अब चीन को बड़े बदलावों से गुजरना होगा. युआन शायद उन सुधारों की राह खोलेगा, ग्लोबल रिजर्व करेंसी की तरफ बढऩे के लिए विदेशी मुद्रा सुधार, बैंकिंग सुधार, वित्तीय सुधार जैसे कई कदम उठाने होंगे,जिनकी तैयारी शुरू हो गई है. सीमित रूप से उदार और गैर-लोकतांत्रिक चीन अगर इतनी बड़ी ताकत हो सकता है तो सुधारों विदेशी मुद्रा क्लब के बाद चीन का ग्लोबल रसूख कितना होगा, इसका अंदाज फिलहाल मुश्किल है.

भारत में नई सरकार आने से लगभग एक साल पहले चीन के राष्ट्रपति बने जिनपिंग ने अपने राजनैतिक व आर्थिक लक्ष्य बड़ी सूझबूझ व दूरदर्शिता के साथ चुने हैं और सिर्फ दो साल में उन्हें ऐसे नतीजों तक पहुंचाया है जिन्हें चीन ही नहीं, पूरी दुनिया महसूस कर रही है. क्या हम चीन से कुछ सीखना चाहेंगे?

रुपये को मिलती वैश्विक स्वीकार्यता, भारतीय मुद्रा का बढ़ता महत्व

वर्तमान संकेट के दौर में भी यह कई मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। लिहाजा नई व्यवस्था से आयातक और निर्यातक दोनों को फायदा हो सकता है। साथ ही इससे विदेशी मुद्रा भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

सतीश सिंह। जापान की रेटिंग एजेंसी नोमुरा होल्डिंग्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान वैश्विक अनिश्चितता के कारण कई देश आर्थिक संकट में फंस सकते हैं। भारत भी थोड़ा चिंतित है, क्योंकि व्यापार घाटा जून में बढ़कर 26.18 अरब डालर हो गया है। साथ ही जून में भारत का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन इस दौरान वस्तुओं का आयात सालाना आधार पर 57.55 प्रतिशत उछाल के साथ 66.31 अरब डालर पर पहुंच गया। व्यापार घाटे में तेजी से वृद्धि के कारण पेट्रोलियम, कोयले और सोने के आयात में भारी बढ़ोतरी होना है। अगर ऐसी ही स्थिति कायम रहती है तो रुपया और भी कमजोर होकर 81 के स्तर को पार कर सकता है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- भारत महंगाई से बेहतर ढंग से निपटने में सक्षम

रूस-यूक्रेन युद्ध समेत अनेक कारणों से विश्व में भू-राजनीतिक संकट अभी भी कायम है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर हैं। भारत रूस और यूक्रेन से अनेक उत्पादों का आयात करता है। साथ ही, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत इराक जैसे देश के साथ कारोबार नहीं कर पा रहा है। वर्तमान परिदृश्य में भारत तथा अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में करना भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे रूस, यूक्रेन, श्रीलंका, इराक आदि देशों के साथ कारोबार करने में भारत को आसानी होगी। साथ ही निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा और वैश्विक कारोबारियों के बीच रुपये की स्वीकार्यता बढ़ेगी। महंगाई में भी कमी आएगी और भू-राजनीतिक संकट के दुष्प्रभावों को भी नाकाम किया जा सकेगा। वैसे आरबीआइ द्वारा उठाए गए कदमों से थोक महंगाई में कमी आई है। जून में यह घटकर 15.18 प्रतिशत पर आ गई, जबकि मई में यह 15.88 प्रतिशत थी।

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इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी डालर विश्व की सबसे मजबूत मुद्रा है और इसी वजह से अधिकांश अंतरराष्ट्रीय कारोबार डालर में किया जा रहा है, परंतु नई व्यवस्था को अपनाने के बाद भारत रुपये में अंतरराष्ट्रीय कारोबार कर सकेगा। इसके लिए भारतीय बैंक रुपये में वोस्ट्रो खाते खोल सकेंगे और वस्तुओं या सेवाओं का आयात करने वाले आयातक विदेशी विक्रेता को उनके सामान की कीमत रुपये में अदा कर सकेंगे अर्थात आयातक का बैंक निर्यातक के बैंक के वोस्ट्रो खाते में सामान की कीमत सीधे रुपये में जमा कर सकेगा। इसी तर्ज पर, निर्यातक वस्तु एवं सेवा की कीमत का भुगतान डालर या दूसरी विदेशी मुद्राओं की जगह रुपये में कर सकेंगे।

अगली दो तिमाहियों में विकास दर फिर से पकड़ेगी रफ्तार

वैसे, इस व्यवस्था को लागू करने की मांग लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की स्वीकार्यता को लेकर सरकार के मन में संशय कायम था। बीते दिनों रूस ने भारत के समक्ष रुपये में कारोबार करने का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद से इस व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिए गंभीरता से विचार किया जाने लगा। अभी, भारत और रूस के बीच चीन की मुद्रा युआन में कच्चे तेल का कारोबार किया जा रहा है।

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अप्रैल और मई में रूस से भारत का आयात 2.5 अरब डालर था, जो सालाना आधार पर 30 अरब डालर होता है, जिसके इस वित्त वर्ष के दौरान 36 अरब डालर होने का अनुमान है। चूंकि अब यूरो के साथ चीन की मुद्रा युआन में भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार किया जाने लगा है, जिससे डालर का प्रभुत्व कम हुआ है। जब डालर और दूसरी विदेशी मुद्राओं की जगह रुपये में कारोबार किया जाने लगेगा तो डालर और ज्यादा कमजोर हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि रुपया अभी सभी मुद्राओं की तुलना में कमजोर नहीं हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की आलोचनाएं / असफलताएं - Criticisms/failures of the International Monetary Fund

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की आलोचनाएं / असफलताएं - Criticisms/failures of the International Monetary Fund

इस आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मुद्रा कोष अपने उद्देश्यों में पूर्ण रूप से सफल हुआ है। इसकी अनेक कमियां हैं, जिनके आधार पर ही आलोचना की गई है। मुद्रा कोष की आलोचनाएं निम्नलिखित हैं:

(i) वैधानिक आधार नहीं मुद्रा कोष ने अपने सदस्य राष्ट्रों के अभ्यशों का निर्धारण उनकी राष्ट्रीय आय, स्वर्ण कोष, विदेशी व्यापार एवं भुगतान शेष की स्थिति के आधार पर किए हैं। परंतु यह तरीका वैज्ञानिक नहीं है।

(ii) विनिमय नियंत्रणों को दूर करने में असमर्थता:- मुद्रा कोष विदेशी व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंधों तथा विनिमय नियंत्रण को समाप्त नहीं कर सका है। ससार के कई देशों ने संरक्षण की नीति को और बढ़ा दिया है।

(iii) स्वर्ण के मूल्य में स्थिरता का अभाव - मुद्रा कोष में स्वर्ण की कीमतों की स्थिरता लाने में सफल नहीं हो सका। सोने का मूल्य सन 1971 तक 35 डॉलर प्रति औस स्थिर रखा गया। परंतु इसके पश्चात विदेशी मुद्रा क्लब यह मूल्य स्थिर नहीं रह सका। यह बढ़कर 1500 डालर प्रति औसत तक हो गया।

(iv) विनिमय स्थिरता का अभाव- मुद्रा कोष विनिमय स्थिरता के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सका। सन 1971 तक कोष स्थिर विनिमय दर निर्धारित करने में सफल रहा। परंतु सन 1971 के पश्चात विनिमय दर में दुबारा परिवर्तन हो गया। यह मुद्रा कोष की सबसे बड़ी असफलता है। यहां तक की अनेक देशों ने कोष से नाममात्र के परामश के बाद अपनी विनिमय दरों में परिवर्तन कर लिए हैं।

(v) सदस्य देशों के साथ समान व्यवहार का अभाव- मुद्रा कोष का सभी सदस्य देशों के साथ एक सा व्यवहार नहीं है। कोष द्वारा धनी देशों को विशेष सुविधायें प्रदान की जाती हैं, परंतु अविकसित देशों की उपेक्षा की जाती है। अफ्रीका के कुछ राष्ट्रों ने तो मुद्रा कोष को अमीरों का क्लब कहा है।

(vi) दानी संस्था - आलोचकों का विचार है कि मुद्रा कोष केवल एक दानी संस्था है। इसका मुख्य कार्य कुछ धनी देशों के धन का प्रयोग उनके समर्थक राष्ट्रों को सहायता देने के लिए किया जाता है, ताकि वे अपने भुगतान शेष के असंतुलन को ठीक कर सके। इस कारण उनका आर्थिक विकास नहीं होता, अपितु विदेशी ऋणग्रस्तता में वृद्धि होती है।

(vii) बहुमुखी विनिमय दर का अंत न हो सका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष बहुमुखी विनिमय प्रणाली को समाप्त नहीं कर सका है। बहुमुखी विनिमय प्रणाली के अंतर्गत एक देश विभिन्न सौदों के लिए विभिन्न दरे अपनाता है। उदाहरण के लिए 1971 में फ्रांस ने दो प्रकार की विनिमय दरों को अपनाया था, एक वास्तविक व्यापार के लिए स्थिर विनिमय दर तथा दूसरे सट्टा सौदों के लिए परिवर्तनशील विनिमय दर को अपनाया था।

(viii) 1971 के मौद्रिक संकट का समाधान नहीं - सन् 1971 में अमेरिका ने डालर की स्वर्ण में परिवर्तनशीलता समाप्त कर दी तथा उसका अवमूल्यन कर दिया। परिणामस्वरूप संसार में मौद्रिक संकट उत्पन्न हो गया। मुद्रा कोष इस संकट का समाधान नहीं कर सका।

इस सकट के फलस्वरूप मुद्रा कोष के स्वर्णमान तथा स्थिर विनिमय दर के उद्देश्यों को छोड़ना पड़ा। यह मुद्रा कोष की सबसे बड़ी असफलता है।

(ix) अंतरराष्ट्रीय तरलता का समाधान विदेशी मुद्रा क्लब नहीं ले पाया मुद्रा कोष अंतरराष्ट्रीय तरलता का उचित समाधान नहीं कर सका है। यद्यपि फंड ने अपने स्थायी कोष में काफी वृद्धि की है तथा विशेष प्राप्त अधिकार के रूप में नई करसी का निर्माण भी किया है। लेकिन फिर भी तरलता की समस्या बनी हुई है। फलस्वरूप आई.एम.एफ. के लिए विकासशील देशों को पर्याप्त मात्रा में धन उधार देना कठिन होगा तथा उनके भुगतान संतुलन के घाटे को पूरा करने के लिए सहायता देना संभव नहीं होगा।

दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार

दो साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार |_40.1

देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट जारी है. 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में यह 3.847 बिलियन डॉलर घटकर 524.52 बिलियन डॉलर रह गया। यह दो सालों का निचला स्तर है। यह जुलाई 2020 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर है। इससे पिछले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 बिलियन डॉलर घटकर 528.37 बिलियन डॉलर रह गया था। पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होती देखी जा रही है। एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेश मुद्रा भंडार 645 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था।

देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने का मुख्य कारण यह है कि रुपए की गिरावट को थामने के लिए केन्द्रीय बैंक मुद्रा भंडार से मदद ले रहा है। रिजर्व बैंक द्वारा जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 21 अक्टूबर को समाप्त हफ्ते में मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण घटक मानी जाने वाली, विदेशीमुद्रा आस्तियां (FCA) 3.593 बिलियन डॉलर घटकर 465.075 बिलियन डॉलर रह गयीं। आंकड़ों के अनुसार देश का स्वर्ण भंडार मूल्य के संदर्भ में 24.7 करोड़ डॉलर घटकर 37,206 बिलियन डॉलर रह गया। केंद्रीय बैंक ने कहा कि विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.44 बिलियन डॉलर हो गया है।

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