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टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं

टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं
अगर आपका 10 साल का टार्गेट है तो आपको 8वें और 9वें साल से थोड़ा-थोड़ा पैसा सेव करना है क्योंकि ऐसा न हो की जिस दिन तक पैसे की जरूरत हो उस दिन तक राह देखी और उसी टाइम पे मार्केट में कोई बड़ा करेक्शन आ गया और आपके पैसे की ग्रोथ घट गई तो आखिरी मिनट तक राह देखने की बजाए थोड़ा-थोड़ा पैसा निकालते रहना चाहिए.

Sensex 1,200 अंकों तक टूटा, क्या म्यूचुअल फंड इनवेस्टर्स को करनी चाहिए फेड की चिंता?

mutual fund investors : यूएस फेड (US Fed) के कल मार्च से ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के बयान के बाद भारतीय स्टॉक मार्केट में घबराहट का माहौल है। अमेरिका का सेंट्रल बैंक महंगाई को लेकर ज्यादा चिंतित है और ऐसा लगता है कि मजबूत ग्रोथ और इम्प्लॉयमेंट डाटा से उन्हें ब्याज दरों में बढ़ोतरी के लिए पर्याप्त गुंजाइश मिलेगी। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या भारतीय म्यूचुअल फंड इनवेस्टर्स (mutual fund investors) को फेड के कदम को लेकर चिंतित होना चाहिए?

कंपनियों को फंड के लिए करना होगा ज्यादा भुगतान

जैसे कि आप देख सकते हैं, भारतीय बाजार की भी भविष्य में रेट हाइक और इकोनॉमी में इंटरेस्ट रेट के फ्यूचर को लेकर यूएस फेड से मिलने वाले संकेतों पर नजर रखते हैं। अब यह लगभग तय हो गया है कि इजी मनी की पॉलिसी (easy money policy) अब जल्द ही बीते दिनों की बात बन जाएग। इसका मतलब है कि लिक्विडिटी घट जाएगी। इसका यह भी मतलब है कि कंपनियों को फंड्स के लिए ज्यादा भुगतान करना होगा।

टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं

एक्रुअल निवेश स्ट्रेटजी का अर्थ पेपर (बांड) को मैच्योरिटी तक होल्ड करना और कूपन पेमेंट का लाभ प्राप्त करना होता है। डेट फंड्स जो इस प्रकार की स्ट्रेटजी को अपनाते हैं, वे ब्याज दर चक्रों से पैदा होने वाले जोखिम, खास तौर पर बढ़ती ब्याज दरों की स्थिति में, टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं को काफी हद तक कम कर देते हैं। आप किसी ऐसे फंड को चुन सकते हैं और खरीदो और होल्ड करो एप्रोच को अपनाते हैं क्योंकि बढ़ती ब्याज दरों की स्थिति में यह उपयुक्त विकल्प होते हैं। इस प्रकार के फंड्स में निवेश करते समय, इस बात की सलाह दी जाती है कि तब तक निवेश के साथ जुड़े रहें जब तक पेपर्स की मैच्योरिटी पर आप्टिमम रिटर्न नहीं मिलते हैं।

टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स एक्रुअल स्ट्रेटजी को अपनाते हैं। मुख्य रूप से ये पैसिव डेट फंड्स होते हैं जो अंडरलाईंग बाण्ड टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं इंडेक्स को ट्रैक करते हैं। इस प्रकार के फंड्स, निवेशकों को पोर्टफोलियों को फंड्स की मैच्योरिटी तारीख के साथ अलाइन करके उन्हे डेट फंड्स के साथ जुड़े जोखिमों का सामना करने में सहायता करते हैं। क्योंकि वे बाण्ड इंडेक्स को ट्रैक करते हैं, इस प्रकार के फंड्स ऐसे पोर्टफोलियो रखते हैं, जिनमें ऐसी सिक्योरिटीज़ होती हैं जो अंडरलाईंग बाण्ड इंडेक्स का हिस्सा होती है, और इस प्रकार फंड्स की तय मैच्योरिटी के साथ ही उनकी भी मैच्योरिटी होती है। टीएमएफ को सरकारी सिक्योरिटीज़, राज्य विकास ऋण या एसडीएल तथा पीएसयू बांड्स में निवेश करना होता है। फंड के पोर्टफोलियो में इन सभी बांड्स और सिक्योरिटीज़ को मैच्योरिटी तक होल्ड टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स क्या हैं किया जाता है। इससे यह तय किया जाता है कि हर वर्ष फंड की अवधि कम होती चली जाती है। इस प्रकार, ब्याज दरों में बदलाव के कारण कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण निवेश कम प्रभावित होता है, और इस प्रकार रिटर्न का अनुमान लगाना संभव हो पाता है। जोखिम को पसंद न करने वाले निवेशक अपने पोर्टफोलियो में टीएमएफ को शामिल करने पर विचार कर सकते हैं।

डेट ओरिऐन्टेड बैलेंस्ड फंड्स

बैलेंस्ड फंड्स, जो मुख्य रूप से डेट में निवेश करते हैं, को जोखिम न उठाने वाले निवेशकों द्वारा चुना जा सकता है। ऐसा करने से निवेशकों के निवेश का प्रतिफल बढ़ता है। ऐसे फंड्स के पोर्टफोलियो का लगभग 65 से 70 फीसदी निवेश डेट इंस्ट्रुमेंट्स में किया जाता है, जबकि शेष फंड्स का निवेश स्टॉक से संबंधित इंस्ट्रुमेंट्स में किया जाता है। संतुलित निवेश स्ट्रेटजी से उस समय सहायता मिलती है जब विभिन्न असेस्ट्स क्लासेज़ के साथ अनिश्चितता जुड़ी रहती है।

बैलेन्स्ड एडवेंटेज फंड

ये डायनामिक असेट एलोकेशन फंड्स होते हैं। यह निवेशकों को उनके निवेश में डेट तथा ईक्विटी, दोनों के लाभ उपलब्ध कराते हैं। बदलती वैल्यूएशन के कारण, इस प्रकार के फंड्स अपने पोर्टफोलियो का 80 फीसदी तक निवेश ईक्विटी में कर सकते हैं। परिस्थितिवश यह निवेश कम करके 20% तक भी कर सकते हैं। जबकि, शेष निवेश को विभिन्न डेट सिक्योरीटीज़ में किया जाता है। क्योंकि इस प्रकार के फंड्स बाईंग लो और सेलिंग हाई पर काम करते हैं, निवेशकों को निरन्तर असेट एलोकेशन स्ट्रेटेजी से लाभ मिलता है। हालांकि विशुद्ध ईक्विटी फंड्स की तरह रिटर्न इतने अधिक नहीं हो सकते हैं। लेकिन मध्यम से दीर्घकाल के लिए निवेश की समयावधि में प्राप्त होने वाला प्रतिफल, आसानी से इंफ्लेशन से अधिक होगा।

Fixed Deposit पर नहीं मिल रहा अच्‍छा रिटर्न तो यहां लगाएं पैसा, दूर हो जाएगी आपकी टेंशन

Fixed Deposit पर नहीं मिल रहा अच्‍छा रिटर्न तो यहां लगाएं पैसा, दूर हो जाएगी आपकी टेंशन

TV9 Bharatvarsh | Edited By: आशुतोष वर्मा

Updated on: Jul 30, 2021 | 11:10 AM

करीब पिछले दो साल से फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट पर ब्‍याज दरें कम होने का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. दूसरी ओर बढ़ती महंगाई भी आम आदमी की एफडी निवेश पर मिलने वाले रिटर्न को निगेट‍िव की ओर ले जा रही है. मतलब एफडी पर रिटर्न मिलने के बाद भी किसी भी चीज को खरीदने की क्षमता कम होती जा रही है. यही कारण है कि ऐसे निवेशक अब अपनी पूंजी को दूसरे विकल्‍प में निवेश कर अच्‍छा रिटर्न पाने की तलाश में हैं. उनकी तलाश एक ऐसे विकल्‍प की है, जो उन्‍हें अच्‍छे रिटर्न के साथ ही पूंजी की सेफ्टी और लिक्विडिटी की भी सुविधा दे.

फायदेमंद विकल्‍प नहीं रहा एफडी

लेकिन, भारतीय रिज़र्व बैंक ने नीतिगत ब्‍याज दरों को कम रखा है और बैंकों व अन्‍य वित्‍तीय संस्‍थानों में पर्याप्‍त फंड्स उपलब्‍ध हैं. इस वजह से लिक्विड फंड्स पर रेट ऑफ रिटर्न्‍स में कमी आई है. खुदरा निवेशकों के लिए अब यह फायदेमंद विकल्‍प नहीं रहा है. इन्‍हीं बातों को देखते हुए हम आपको एफडी की जगह कुछ अन्‍य निवेश विकल्‍प के बारे में बता रहे हैं.

फ‍िक्‍स्ड मैच्‍योरिटी प्‍लान (FMP): चूंकि, फिक्‍स्‍ड मैच्‍योरिटी प्‍लान को तय मैच्योरिटी अवधि और तय कूपन रेट पर फाइनेंशियल इंस्‍ट्रूमेंट्स में निवेश किया जाता है, निवेशक काफी सटीकता से मिलने वाले रिटर्न का अनुमान लगा सकते हैं. वे पता लगा सकते हैं कि उनकी मैच्‍योरिटी वैल्‍यू क्‍या है और उन्‍हें कब ये रकम मिलेगी. हालांकि, इस तरह के फंड्स में ट्रांजैक्‍शन को लेकर कुछ समस्‍या आ सकती है.

इन निवेश फंड्स में जोखिम का ध्‍यान रखें

म्‍यूचुअल फंड्स में निवेश कैपिटल इन्‍वेस्‍टमेंट और इसीलिए यह फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट की तुलना में अधिक जोखिम वाला विकल है. टार्गेट मैच्‍योरिटी गिल्‍ट इंडेक्‍स फंड्स 6-7 साल बाद दोबार इन्‍वेस्‍टमेंट के समय थोड़ा अधिक जोखिम वाला बन जाता है क्‍योंकि उस दौरान नई सिक्‍योरिटीज का कूपन रेट कम हो. इसके अलावा निवेशकों पर मैच्‍योरिटी की तारीख से पहले विड्रॉल के समय उतार-चढ़ाव का भी असर पड़ सकता है.

नोट: ऊपर दिए गए विकप्‍ल महज एक सुझाव है. इनमें निवेश करने का फैसला पर्याप्‍त जानकारी जुटाने के बाद ही लें.

एक्सिस म्यूचुअल फंड ने लांच किया एएए बांड प्लस एसडीएल ईटीएफ 2026 मैच्योरिटी फंड

मुंबई– एक्सिस म्यूचुअल फंड ने एक्सिस एएए बांड प्लस एसडीएल ईटीएफ 2026 मैच्योरिटी फंड लांच किया है। यह फंड टार्गेट मैच्योरिटी ईटीएफ पहले से ही तय तारीख को बंद होगा। इस तरह से इसे तैयार किया गया है। यह डेट में निवेश करेगा। बेंचमार्क इंडेक्स की मैच्योरिटी तारीख 30 अप्रैल 2026 होगी। इस बेंचमार्क की रचना एएए सिक्योरिटीज और एसडीएल के लिए समान अलोकेशन होने से निवेशकों को उच्च क्रेडिट और विविधीकरण का पोर्टफोलियो मिलेगा।

कंपनी की ओर से जारी प्रेस बयान के मुताबिक, डेट निवेशकों को पैसिव निवेश करने का फायदा मिलेगा और 5 वर्ष की एक तय समय के लिए यह फंड उपलब्ध होगा। ईटीएफ म्यूचुअल फंड के बेंचमार्क के तहत डिजाइन किया जाता है। डेट ईटीएफ निवेशकों को स्थिर और लिक्विडिटी जैसे समीकरण देता है।

इस बारे में कंपनी के एमडी चंद्रेश निगम ने कहा कि एक जवाबदार फंड हाउस के रूप में एक्सिस म्यूचुअल फंड निवेशकों को सभी प्रकार का उत्पाद देने की आवश्यकता को समझता है। हम इस समय बेहतर उत्पाद तैयार कर रहे हैं और निवेशकों को विभिन्न तरीके से निवेश के अवसर मुहैया करा रहे हैं। यह नया फंड 23 अप्रैल से 7 मई तक खुला रहेगा।

इक्विटी म्यूच्युअल फंड्स से पैसा कब निकालें, विद्ड्रॉल का राइट टाइम क्या है?

  • Money9 Hindi
  • Publish Date - July 18, 2021 / 11:11 AM IST

इक्विटी म्यूच्युअल फंड्स से पैसा कब निकालें, विद्ड्रॉल का राइट टाइम क्या है?

इंफ्रास्ट्रक्चर फंड मुख्य रूप से पावर, कंस्ट्रक्शन, कैपिटल गुड्स और मेटल सेगमेंट की कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं.

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स (M utual Fund ) लॉन्ग टर्म के लिए अच्छे हैं, इनमें पैसे लगाने चाहिए- इस तरह की बातें तो हर कोई करता है. लेकिन, इस फंड से कब निकलना चाहिए, निकलने की राइट स्ट्रैटेजी क्या होनी चाहिए ये कोई नहीं बताता. तो आज हम आपकी इसी मुश्किल को आसान करने की कोशिश कर रहे हैं.

एक तय गोल के साथ निवेश करें

जब भी इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना हो तो स्पेसिफिक टार्गेट के साथ निवेश करें और जब भी वो टार्गेट पूरा हो जाय विद्ड्रॉ कर लें. मान लीजिए कि आपको अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे की जरूरत है और आपने एसआइपी या एकमुश्त अमाउंट से इक्विटी फंड में निवेश करना चालू किया. बेटी की उम्र है 15 साल. आपको 10 साल में 25 लाख इकठ्ठे करने हैं तो सबसे पहले आपके दिमाग में टारगेट होना चाहिए कि आपको कितना अमाउंट इकठ्ठा करना है. अगर ये लक्ष्य सातवें या आठवें साल में अचीव हो जाता है. यानी कि आपने 10 साल के लिए 12 फीसदी रिटर्न का सोचा था मगर आपको 15 फीसदी रिटर्न मिल गया और आपका गोल हासिल हो गया. तो इस रकम को विद्ड्रॉ करके लिक्विड फंड में सेव करना चाहिए.

जैसे की हमने ऊपर बताया, अगर आपका 10 साल में 25 लाख इकठ्ठा करने का गोल हासिल न हुआ, यानी की 25वें साल तक 25 लाख रुपये इकठ्ठा नहीं कर पाए तो क्या होगा?

हर कोई मार्केट के पीछे भागे तब हो जाओ सावधान

मार्केट में जब तेजी का माहौल होता है तब लोग उसके पीछे भागते हैं. हर कोइ व्यक्ति जो मार्केट के बारे में ज्यादा जानता भी नहीं वो भी रातों-रात शेयर बाजार से पैसा कमा लेना चाहता है. दरअसल, 10 साल में इस तरह का माहौल दो या तीन बार अवश्य आता है. ऐसे वक्त में आपको सावधान हो जाना चाहिए. मार्केट का माहौल देख के आपको एग्जिट करना चाहिए.

एंकरएज ट्रेनिंग के फाउंडर एंड सीईओ जिगर पारेख कहते है, “फंड से निकलने के लिए आप पीइ, पीबी और मार्केट केप टु जीडीपी के रेशियो को भी देख सकते है. ये रेशियो अपनी एवरेज के मुकाबले बहोत हाइ है यानी ओल टाइम हाइ की तरफ चल रहा है तो उस टाइम में भी आप इक्विटी म्यूच्युअल फंड से पैसा निकाल सकते हो. और लिक्विड फंड में स्विच करके प्रोफिट बुक कर सकते हो. याद रहे आपको अपने गोल एचिव के लिए निवेश करना है तो एक्जिट स्ट्रेटेजी के बारे में भी मालूम होना चाहिए.”

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