लघु स्थिति

डेली अपडेट्स
यह एडिटोरियल दिनांक 23/04/2021 को 'द हिंदू बिज़नेस लाइन' में प्रकाशित लेख “Micro enterprises need exclusive treatment” पर आधारित है। इसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) क्षेत्र में सूक्ष्म उद्योग के महत्त्व पर चर्चा की गई है।
जैसा कि हम जानते हैं कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSME) को सामाजिक समानता एवं आर्थिक विकास का इंजन स्वीकार किया जाता है। अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाओं में MSME क्षेत्र 90 % से अधिक योगदान देता है एवं औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात को बढ़ावा देता है और साथ ही बेरोज़गारी की दर को कम करता है।
हालाॅंकि MSME में सूक्ष्म उद्योग सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है। इस क्षेत्र को विमुद्रीकरण एवं कोविड-19 के कारण आकस्मिक लॉकडाउन की दोहरी क्षति पहुँची है। इसके अतिरिक्त, सूक्ष्म उद्योगों से जुड़े नीतिगत निर्णय लेने के लिये इस क्षेत्र से जुड़ी कई विशेषताओं एवं बाधाओं का ध्यान रखना पड़ता है। संपूर्ण MSME क्षेत्र के लिये बनाई गई नीतियाँ इसके लिये कम उपयोगी हैं।
MSME में सूक्ष्म उद्योगों का महत्त्व
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation - NSSO) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण आधारित सूक्ष्म उद्योग MSME में 99.7% का योगदान देते हैं, वहीं MSME क्षेत्र में उपलब्ध कुल रोज़गार का 97.5% रोज़गार सूक्ष्म उद्योग द्वारा प्रदान किया जाता है।
- इसके अलावा सूक्ष्म उद्योग MSME के कुल उत्पादन में 90.1% और आय में 91.9% का योगदान देता है।
- शिल्पकार, बुनकर, खाद्य प्रसंस्करण, मछुआरा, बढ़ई, मोची, ट्यूटर, दर्जी, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सड़क किनारे स्थित ढाबे, आइसक्रीम, ब्यूटी पार्लर, सैलून, मोटर मरम्मत, विज्ञापन एजेंसी इत्यादि सूक्ष्म उद्योग के कुछ उदाहरण हैं। बड़ी संख्या में इनकी उपस्थिति सूक्ष्म उद्योग को हमारे सामाजिक-आर्थिक प्रणाली का सबसे विविधतापूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्र बनाती है।
- सूक्ष्म उद्योगों के कई प्रकार है एवं उनकी गतिविधियाॅं भी विविध प्रकार की हैं किंतु इनका आर्थिक योगदान अपेक्षाकृत कम है; फिर भी ये उद्योग विकास प्रक्रिया द्वारा दरकिनार किये गए असुरक्षित वर्गों के लिये बेहद ज़रूरी हैं।
सूक्ष्म उद्योग से संबंधित चुनौतियाॅं
- पूंजीगत ऋण: सूक्ष्म उद्योगों में स्वयं की पूंजी की क्षमता कम है। अतः इन उद्योगों में परिसंपत्तियों का उपयोग किराये पर अधिक किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि इन उद्यमों में कुल लागत का एक बड़ा हिस्सा किराये पर खर्च होता है। पूंजीगत ऋण सूक्ष्म उद्योगों की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये बहुत कम उपयोगी हो पाते हैं। बाज़ार की अनिश्चितताओं से जुड़े जोखिमों को देखते हुए सूक्ष्म उद्यम में निवेश के लिये लाभदायक क्षेत्र नहीं माना जाता है।
- संरचनात्मक चुनौती: कार्यबल का एक बड़ा भाग इस क्षेत्र में होने की बाद भी इस समूह के लोगों की संगठित आवाज़ की कमी है। इस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व के लिये अलग से कोई समूह सक्रिय नहीं है। अतः प्रक्रियाओं की सीमित और कम समझ के कारण बड़े स्तर पर सौदेबाजी (Negotiation) में ये पिछड़ जाते हैं।
- 'वन साइज फिट ऑल' दृष्टिकोण: MSME के तहत सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों हेतु प्रोत्साहन पैकेज सामान्यीकृत रूप से डिज़ाइन किया जाता है। विशेष तौर पर लघु उ द्योगों के लिये कोई वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज अलग से डिज़ाइन नहीं किया जाता है।
आगे की राह
- लघु उद्योगों को समर्पित नीति: यह स्वीकार करने की आवश्यकता है लघु स्थिति कि एक सामान्यीकृत नीति को पूरे MSME क्षेत्र पर लागू नहीं किया जा सकता है और ना ही इससे सूक्ष्म उद्योगों की आवश्यकताएँ पूरी हो सकती है। दरअसल MSMEs पर RBI की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि सूक्ष्म (और लघु) उद्यमों में सौदेबाजी की क्षमता सीमित है। अतः सूक्ष्म उद्योग की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र करने और उनके विशिष्ट उपयोग के लिये एक केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- सहकारी मॉडल: उन्नत प्रौद्योगिकी में उच्च निवेश, डिजिटल और प्रौद्योगिकी सक्षम प्लेटफार्मों के उपयोग, प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, मानव संसाधनों में अधिक निवेश, वित्त की बेहतर पहुॅंच आदि के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
- सहकारी मॉडल (किसान उत्पादक संगठनों की तर्ज़ पर) को बढ़ावा देने से इस संबंध में सूक्ष्म उद्योगों को मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
वर्ष 2024-25 तक $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के लिये MSME क्षेत्र को नज़रंदाज करना सही नहीं होगा क्योंकि सूक्ष्म उद्योग का योगदान उत्पादन, आय एवं रोज़गार प्रदान करने में उल्लेखनीय है, जो एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।
अभ्यास प्रश्न: सूक्ष्म उद्योगों को ध्यान में रखते हुए एक नई औद्योगिक नीति तैयार करना आवश्यक हो गया है। टिप्पणी कीजिये।
लघु उद्योग दिवस: ताना-बाना से बुनकर खींच रहे हैं जीवन की पतवार, मुनाफा कमाने के साथ दे रहे रोजगार
अभी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के स्कूल ड्रेस गुलाबी रंग का शर्ट और गहरा भूरा रंग का पैंट हैं। शर्ट के कपड़े तो महाराष्ट्र के भिवंडी और उत्तरप्रदेश के आंबेडकर नगर जिले के टांडा इलाके से प्रदेश भर में आपूर्ति होते हैं, लेकिन पैंट के कपड़ों की जरूरतों लघु स्थिति को गोरखपुर के टेक्सटाइल और पावरलूम लघु उद्योग पूरी करते हैं।
ताना-बाना से गोरखपुर के कई बुनकर जीवन की पतवार खींच रहे हैं। कोरोना के दौरान बदहाली झेल रहे बुनकरों की स्थिति सरकार के प्रयासों से थोड़ी बेहतर हुई है। सरकारी स्कूलों में पैंट के कपड़ों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यहां के बुनकरों के ताने-बाने की रफ्तार तेज हो गई है। स्थिति यह है कि कई पावरलूम संचालक बुनकर प्रतिदिन 1,000 मीटर तक कपड़े तैयार करने लगे हैं। इन स्थितियों के बावजूद अभी बुनकरों को कई बदलाव का इंतजार है।
अभी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के स्कूल ड्रेस गुलाबी रंग का शर्ट और गहरा भूरा रंग का पैंट हैं। शर्ट के कपड़े तो महाराष्ट्र के भिवंडी और उत्तरप्रदेश के आंबेडकर नगर जिले के टांडा इलाके से प्रदेश भर में आपूर्ति होते हैं, लेकिन पैंट के कपड़ों की जरूरतों को गोरखपुर के टेक्सटाइल और पावरलूम लघु उद्योग पूरी करते हैं।
जब तक स्कूलों के माध्यम से ड्रेस की आपूर्ति होती थी, तब तक यहां के बुनकरों की स्थिति काफी बेहतर थी, लेकिन कोरोना काल में उनकी स्थिति काफी खराब हो गई थी। अब इनकी स्थिति धीरे-धीरे बेहतर हुई है।
कोरोना की मार से अब गोरखपुर के पावरलूम उद्योग काफी हद तक उबर गए हैं। पहले जब स्कूलों में ही ड्रेस की खरीदारी होती थी, तब तक स्कूल स्तर पर ही कपड़ों की खरीद होती थी। लेकिन जब से बच्चों के अभिभावकों के खातों में पैसे जाने लगे तब से स्थिति थोड़ी खराब हुई है। सरकार की नीतियों की वजह से इसमें थोड़ा सुधार हुआ है। प्रत्येक दिन एक हजार मीटर तक कपड़े तैयार कर लिए जा रहे हैं।- हबीब अहमद अंसारी, जामिया नगर, रसूलपुर
कोरोना काल से लेकर पिछले साल तक गोरखपुर के बुनकरों की स्थिति काफी विकट हो गई थी। लेकिन अब इसमें सुधार हुआ है। स्कूल ड्रेस तैयार करने वाले रेडीमेड गारमेंट उद्यमियों की ओर से पैंट के कपड़ों की काफी मांग है। जिसको पूरा करने में पावरलूम के ताने-बाने दिन-रात दौड़ते रहते हैं। ऐसे में स्थितियां थोड़ी बेहतर हुई हैं। हालांकि बुनकरों की स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार को कुछ और कदम उठाने चाहिए।- मोहम्म्द खलीक, बुनकर
गोरखपुर के टेक्सटाइल उद्योगों में तैयार होने वाले कपड़े की गुणवत्ता काफी बेहतर रहती है। न सिर्फ उत्तरप्रदेश के बल्कि देश के अन्य राज्यों में इनकी सप्लाई होती है। इसमें पावरलूम उद्योगों की भी बड़ी भूमिका है। मात्र चार साल पहले यहां पांच से छह हजार पावरलूम चलते थे। धीरे धीरे इनकी संख्या घटकर डेढ़ हजार रह गई थी। अब फिर से संख्या बढ़ रही है। स्कूल के पैंट के कपड़ों की मांग बढ़ गई है।- दीपक कारीवाल, उद्यमी
छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस
लघु और कुटीर उद्योगों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश भर में हर साल 30 अगस्त को छोटे उद्योगों को उनकी समग्र विकास क्षमता और वर्ष में उनके विकास के लिए प्राप्त अवसरों के समर्थन और बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस के रूप में मनाया जाता है।विस्तार
ताना-बाना से गोरखपुर के कई बुनकर जीवन की पतवार खींच रहे हैं। कोरोना के दौरान बदहाली झेल रहे बुनकरों की स्थिति सरकार के प्रयासों से थोड़ी बेहतर हुई है। सरकारी स्कूलों में पैंट के कपड़ों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यहां के बुनकरों के ताने-बाने की रफ्तार तेज हो गई है। स्थिति यह है कि कई पावरलूम संचालक बुनकर प्रतिदिन 1,000 मीटर तक कपड़े तैयार करने लगे हैं। इन स्थितियों के बावजूद अभी बुनकरों को कई बदलाव का इंतजार है।
अभी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के स्कूल ड्रेस गुलाबी रंग का शर्ट और गहरा भूरा रंग का पैंट हैं। शर्ट के कपड़े तो महाराष्ट्र के भिवंडी और उत्तरप्रदेश के आंबेडकर नगर जिले के टांडा इलाके से प्रदेश भर में आपूर्ति होते हैं, लेकिन पैंट के कपड़ों की जरूरतों को गोरखपुर के टेक्सटाइल और पावरलूम लघु उद्योग पूरी करते हैं।
जब तक स्कूलों के माध्यम से ड्रेस की आपूर्ति होती थी, तब तक यहां के बुनकरों की स्थिति काफी बेहतर थी, लेकिन कोरोना काल में उनकी स्थिति काफी खराब हो गई थी। अब इनकी स्थिति धीरे-धीरे बेहतर हुई है।
कोरोना की मार से अब गोरखपुर के पावरलूम उद्योग काफी हद तक उबर गए हैं। पहले जब स्कूलों में ही ड्रेस की खरीदारी होती थी, तब तक स्कूल स्तर पर ही कपड़ों की खरीद होती थी। लेकिन जब से बच्चों के अभिभावकों के खातों में पैसे जाने लगे तब से स्थिति थोड़ी खराब हुई है। सरकार की नीतियों की वजह से इसमें थोड़ा सुधार हुआ है। प्रत्येक दिन एक हजार मीटर तक कपड़े तैयार कर लिए जा रहे हैं।- हबीब अहमद अंसारी, जामिया नगर, रसूलपुर
कोरोना काल से लेकर पिछले साल तक गोरखपुर के बुनकरों की स्थिति काफी विकट हो गई थी। लेकिन अब इसमें सुधार हुआ है। स्कूल ड्रेस तैयार करने वाले रेडीमेड गारमेंट उद्यमियों की ओर से पैंट के कपड़ों की काफी मांग है। जिसको पूरा करने में पावरलूम के ताने-बाने दिन-रात दौड़ते रहते हैं। ऐसे में स्थितियां थोड़ी बेहतर हुई हैं। हालांकि बुनकरों की स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार को कुछ और कदम उठाने चाहिए।- मोहम्म्द खलीक, बुनकर
गोरखपुर के टेक्सटाइल उद्योगों में तैयार होने वाले कपड़े की गुणवत्ता काफी बेहतर रहती है। न सिर्फ उत्तरप्रदेश के बल्कि देश के अन्य राज्यों में इनकी सप्लाई होती है। इसमें पावरलूम उद्योगों की भी बड़ी भूमिका है। मात्र चार साल पहले यहां पांच से छह हजार पावरलूम चलते थे। धीरे धीरे इनकी संख्या घटकर डेढ़ हजार रह गई थी। अब फिर से संख्या बढ़ रही है। स्कूल के पैंट के कपड़ों की मांग बढ़ गई है।- दीपक कारीवाल, उद्यमी
छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस
लघु और कुटीर उद्योगों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। देश भर में हर साल 30 अगस्त को छोटे उद्योगों को उनकी समग्र विकास क्षमता और वर्ष में उनके विकास के लिए प्राप्त अवसरों के समर्थन और बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस के रूप में मनाया जाता है।मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम
Diary / Calendar 2022 Diary/Calendar 2022
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की स्थापना 2 अप्रैल 1990 को संसद के एक अधिनियम के तहत, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्तपोषण एवं विकास के लिए और साथ ही इसी तरह की गतिविधियों में संलग्न संस्थाओं के कार्यों का समन्वय करने हेतु प्रमुख वित्तीय संस्था के रूप में की गई।
लक्ष्य एवं दर्शन
लक्ष्य
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए ऋण प्रवाह सुगम और सुदृढ़ बनाना तथा एमएसएमई पारितंत्र की वित्तीय एवं विकास संबंधी कमियों की पूर्ति करना।
दर्शन
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र को सुदृढ़, ऊर्जावान तथा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के उद्देश्य से उसकी वित्तीय और विकास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति का एकल केंद्र बनना, सिडबी की छवि श्रेयस्कर और ग्राहक-मैत्र संस्था के रूप में स्थापित करना तथा आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए शेयरधारकों के धन की वृद्धि और सर्वोत्तम नैगम मूल्यों का संवर्द्धन करना।
निदेशक-मंडल
निदेशक मंडल
अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
उप प्रबंध निदेशक
उप प्रबंध निदेशक
विशेष कार्य अधिकारी ग्रामीण विकास विभाग ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार
भारत सरकार द्वारा नामितआर्थिक सलाहकार वित्तीय सेवाएँ विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार
भारत सरकार द्वारा नामितमुख्य महाप्रबंधक, भारतीय स्टेट बैंक
भारतीय स्टेट बैंक द्वारा नामितपूर्व कार्यपालक निदेशक भारतीय जीवन बीमा निगम
भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा नामितमुख्य महाप्रबंधक, नाबार्ड
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक(नाबार्ड) द्वारा नामितपूर्व कार्यपालक निदेशक, भारतीय रिज़र्व बैंक, सिडबी के निदेशक-मंडल द्वारा सहयोजित
प्रबंध निदेशक, क्रेडिट सुइस सिक्युरिटीज़ इंडिया प्रा. लि.
सिडबी के निदेशक-मंडल द्वारा सहयोजितसंस्थापक- विनपे तथा प्राइवेट ईक्विटी, उद्यम पूँजी में अग्रणी निवेशक एवं बड़े संस्थागत निवेशकों की विशेषज्ञ सलाहकार
सिडबी के निदेशक-मंडल द्वारा सहयोजितसंस्थापक और प्रबंध निदेशक,
इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइज़री सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (आईआईएएस)
सिडबी के निदेशक-मंडल द्वारा सहयोजितउद्-भव
सिडबी की भूमिका
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना वर्ष 1990 में संसद के अधिनियम के अंतर्गत की गई। सिडबी को एमएसएमई क्षेत्र के संवर्द्धन, वित्त पोषण और विकास के तिहरी कार्य-सूची को क्रियान्वित करने और तत्-सम गतिविधियों में संलग्न विभिन्न संस्थाओं के कार्यों के मध्य समन्वय करने के लिए एक शीर्ष वित्तीय संस्था के रूप में कार्य करने के लिए अधिदेशित किया गया।
बैंक अपने अधिदेश का निष्पादन निम्नानुसार करता है
अप्रत्यक्ष वित्त – जो एमएसएमई क्षेत्र के वित्तपोषण में गुणक प्रभाव / व्यापक पहुंच पर आधारित है और इसे बैंकों, एसएफबी, एनबीएफसी, एमएफआई और नव युगीन फिनटेक के माध्यम से संचालित किया जाता है।
प्रत्यक्ष वित्त - एमएसएमई क्षेत्र में मौजूद ऋण अंतरालों को भरने का लक्ष्य है और इसे प्रदर्शनपरक और नवोन्मेषी वित्त उत्पादों के माध्यम से संचालित किया जाता है, जिसे ऋण प्रदायगी पारितंत्र द्वारा और प्रवर्द्धित किया जा सकता है।
निधियों की निधि – निधियों की निधि शृंखला के माध्यम से उभरते स्टार्टअप्स का समर्थन लघु स्थिति करके उद्यमिता संस्कृति को बढ़ाता है।
संवर्द्धन एवं विकास - क्रेडिट-प्लस पहलों के माध्यम से एमएसएमई क्षेत्र के समग्र विकास के लिए उद्यमिता और पथप्रदर्शन (हैंडहोल्डिंग) द्वारा नवोदित उद्यमियों को बढ़ावा देना।
सूत्रधार- सरकार की एमएसएमई उन्मुख योजनाओं के लिए नोडल एजेंसी जैसी भूमिकाओं के माध्यम से एक सूत्रधार की भूमिका का निर्वाह कर लघु स्थिति रहा है।
लघु उद्योगों का विकास | उत्तर प्रदेश में लघु औद्योगिक क्षेत्र एवं सम्पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र का वार्षिक वृद्धि दर | उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों की स्थिति | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक समस्याओं की व्याख्या | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास के समस्याओं की विवेचना
लघु उद्योगों का विकास | उत्तर प्रदेश में लघु औद्योगिक क्षेत्र एवं सम्पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र का वार्षिक वृद्धि दर | उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों की स्थिति | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक समस्याओं की व्याख्या | उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास के समस्याओं की विवेचना | Development of small scale industries in Hindi | Annual growth rate of small industrial area and entire industrial area in Uttar Pradesh in Hindi | Status of small scale industries in Uttar Pradesh in Hindi | Explanation of industrial problems of Uttar Pradesh in Hindi | Discuss the problems of industrial development of Uttar Pradesh in Hindi
Table of Contents
लघु उद्योगों का विकास
एक विकासशील अर्थव्यवस्था में लघु उद्योग उत्पादन, रोजगार, औद्योगीकरण, आदि में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। भारत के सन्दर्भ में भी यह बात लागू होती है भारत में देश के कुल निर्यात का एक तिहाई हिस्सा लघु उद्योगों के द्वारा किया जाता है। जोकि एक महत्वपूर्ण योगदान है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि औद्योगीकरण में लघु उद्योगों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। चाहे वह देश हो या राज्य प्रत्येक अर्थव्यवस्था में लघु उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तर प्रदेश में लघु उद्योगों की स्थिति को तालिका-1 तालिका-2 में प्रदर्शित किया गया है।
तालिका-1 में राज्य आय, लघु उद्योग, समस्त विनिर्माण क्षेत्र तथा समस्त औद्योगिक क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर को दिखाया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में 1990 के दशक से राज्य आय की विकास दर अत्यन्त मन्द या सुस्त पड़ गयी थी तथा इसकी वृद्धि दर में व्यापक उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं। राज्य आय की स्थिति को देखने से इस बात का अनुभव होता है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास एवं स्थायित्व की कमी बनी हुई है। राज्य की यह स्थिति राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विपरीत है।
वास्तव में, राज्य आय की कमजोर स्थिति से प्रदेशों में औद्योगिक विकास में व्याप्त कमजोरियाँ परिलक्षित होती हैं क्योंकि यह चाहे सम्पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर हो अथवा