अस्थिरता के दो प्रकार हैं

पाक राजनीतिक अस्थिरता से गृह युद्ध के निकट महंगाई बढ़ने, विदेशी मुद्रा घटने से अर्थव्यवस्था चौपट
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान इन दिनों अपने ‘आजादी मार्च’ के लिए चर्चा में हैं जिसके परिणामस्वरूप देश में गृह युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। इमरान खान द्वारा 25 मई को पेशावर से इस्लामाबाद तक निकाले गए ‘लांग मार्च’ के दौरान जबरदस्त हिंसा तथा आगजनी हुई और प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस को उन पर आंसू गैस के गोले छोडऩे पड़े। पुलिस ने इस सिलसिले में 150 लोगों के विरुद्ध मामले दर्ज किए हैं जिनमें से 45 को इस्लामाबाद के जिन्ना एवेन्यू में मैट्रो स्टेशनों को जलाने, एक्सप्रैस चौक पर एक सरकारी वाहन को नुक्सान पहुंचाने और डी चौक में ‘जिओ न्यूज’ और ‘जंग’ कार्यालय के शीशे तोडऩे, जिसके दौरान अनेक कर्मचारी घायल हो गए, के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
पहले इमरान ने इसे अनिश्चितकालीन धरना बताया था परंतु बाद में 26 मई को वह सरकार को चेतावनी देकर अपने घर ‘बनी गाला’ लौट गए हैं कि सेना और अमरीका के जरिए बनाई गई नई सरकार को सत्ता से हटाने और नए चुनावों की घोषणा तक शांत नहीं बैठेंगे और यदि सरकार ने इस दौरान चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं की तो वह फिर पूरे देश में रैली करते हुए इस्लामाबाद पहुंचेंगे। दूसरी ओर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी 26 मई को कह दिया है कि, ‘‘इमरान खान संसद को धमकाना बंद करें। वह 6 दिन में चुनाव की तारीख की घोषणा करने की मांग नहीं कर रहे बल्कि ब्लैकमेल कर रहे हैं।’’‘‘उन्हें यह सब अपने घर में करना चाहिए। उनकी जिद या मर्जी के अनुसार चुनाव नहीं होंगे। इनका फैसला नैशनल असैंबली ही करेगी।’’
उल्लेखनीय है कि 11 अप्रैल को देश के 23वें प्रधानमंत्री के रूप में शहबाज शरीफ ने शपथ तो ग्रहण कर ली परंतु इस समय पाकिस्तान जिन हालात से गुजर रहा है और शहबाज शरीफ को इमरान अस्थिरता के दो प्रकार हैं खान आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं की जो विरासत सौंप कर गए हैं, उनसे स्पष्ट है कि शहबाज शरीफ का आगे का रास्ता आसान नहीं है। शहबाज शरीफ के आने के बाद से पाकिस्तान की राजनीति में एक दिन भी शांतिपूर्वक नहीं गुजरा है। पाकिस्तानी पत्रकार मरियाना बाबर के अनुसार :
‘‘शहबाज सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों में इमरान खान एक ऐसे राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार कर रहे हैं जिसे कुछ लोग ‘पागल’ कहते हैं। इमरान ने शांत बैठ कर यह सोचने की कोशिश नहीं की कि अपने 3 वर्षों के शासन के दौरान उनकी सरकार ने कौन-कौन सी गलतियां कीं।’’ ‘‘अपने शासनकाल के दौरान इमरान खान ने चीन के सिवाय कूटनीतिक और आर्थिक रूप से सहायता देने वाले अपने करीबी देशों के साथ दशकों पुराने संबंध समाप्त कर दिए।’’ विदेशी मुद्रा की भारी कमी के चलते विदेशी ऋण चुकाने में नाकाम रहने के कारण पाकिस्तान के डिफाल्टर हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। विदेशी बैंकों ने तेल आयात करने के लिए पाकिस्तान को ऋण देने से इंकार कर दिया है और वे नया ऋण देने से पहले पिछला भुगतान मांग रहे हैं।
मुद्रा के अवमूल्यन और आकाश छूती महंगाई का आंकड़ा गत वर्ष के 9.5 प्रतिशत के मुकाबले इस वर्ष अप्रैल में 13.4 प्रतिशत तक पहुंच जाने से सभी प्रकार की खाद्य वस्तुओं से लेकर पैट्रोल-डीजल तक के भाव बढ़ जाने के कारण लोगों का घरेलू बजट अस्त-व्यस्त हो गया है। इमरान ने देश की अर्थव्यवस्था नष्ट करने की जो भूल की है उसके दृष्टिïगत लोग कह रहे हैं कि कहीं पाकिस्तान श्रीलंका के रास्ते पर ही न चल पड़े। इस बीच पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार को कुछ मजबूती देने के लिए सऊदी सरकार ने इसके केंद्रीय बैंक में 3 अरब डालर जमा करवाए हैं वहीं पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक बड़े सहायता पैकेज को अंतिम रूप देने दोहा गए हैं।
इसके अलावा शहबाज सरकार के रास्ते में एक रोड़ा उनकी भतीजी मरियम नवाज (नवाज शरीफ की बेटी) ने भी अटका रखा है। शहबाज सरकार में शामिल दल तथा उनकी पार्टी पी.एम.एल. (एन) भी उनसे जल्द चुनाव कराने की मांग कर रही है जिसमें मरियम शामिल है। जहां शहबाज शरीफ का कहना है कि इमरान खान के विरोध मार्च के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार को 149 मिलियन रुपए खर्च करने पड़े वहीं इमरान खान का कहना है कि :
‘‘हम अपने फैसले से किसी भी हालत में पीछे हटने वाले नहीं हैं और शहबाज शरीफ की सरकार यदि 6 दिनों में चुनावों की घोषणा नहीं कर देती तो हम इस बार लाठी-डंडों से लैस होकर सभी पाकिस्तानियों को लेकर दोबारा राजधानी में वापस आएंगे। हम यहां जेहाद के लिए हैं।’’इमरान खान के उक्त बयान से लगता है कि वह अपनी बात से पीछे नहीं हटेंगे जिससे पाकिस्तान गृहयुद्ध की ओर बढ़ सकता है।—विजय कुमार
'मनुष्य अब भगवान बनने की प्रक्रिया में है'
दूसरी बड़ी वैश्विक चुनौती पर्यावरण से जुड़ी चुनौती है. हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र को लगातार इस स्तर तक अस्थिर करते जा रहे हैं कि आज हमने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के विध्वंस का खतरा मोल लिया है.
मंजीत ठाकुर/संध्या द्विवेदी
- नई दिल्ली,
- 21 मार्च 2018,
- (अपडेटेड 21 मार्च 2018, 2:53 PM IST)
राष्ट्रवाद ने वापसी की है. दुनिया के छोटे और सुदूर कोनों में नहीं बल्कि पश्चिमी यूरोप, उत्तर अमेरिका, रूस, चीन और भारत जैसी महाशक्तियों में इसकी वापसी हुई है. राष्ट्रवाद का फिर आना क्या दर्शाता है? क्या राष्ट्रवाद 21वीं सदी की अभूतपूर्व समस्याओं का वास्तविक निदान दे सकेगा? अथवा यह पलायनवादी आसक्ति है जो मानवता और समूचे पर्यावरण तंत्र को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर देगी?
जैसा कि लोग सोचते हैं उससे उलट, राष्ट्रवाद वास्तव में एक बहुत नई ईजाद है. जी, मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है लेकिन करोड़ों साल से वह छोटे मगर उस समुदाय में ही रहता आया है जिसके साथ उसे अपनापन लगता है.
केवल 5,000 साल पहले या उसके आसपास ही छोटे समूहों और कबीलों में एकजुटता आई और वे आकार में बड़े-बड़े समूहों का निर्माण तब तक करते गए जब तक कि उन्होंने कोई ऐसा राष्ट्र न बना लिया जिसमें करोड़ों अपरिचित लोग रहते हों.
राष्ट्रों का निर्माण हुआ क्योंकि वे बड़े स्तर की समस्याओं का समाधान कर सकते थे जो छोटे कबीलों के बूते से बाहर था. राष्ट्र लोगों को बेहतर सुरक्षा और समृद्धि के साथ अनेक प्रकार की सेवाएं प्रदान करने में सक्षम हो सकते थे.
सवाल है कि क्या हमारी समस्याओं के निदान और अवसरों के लिए, सुरक्षा और समृद्धि के लिए राष्ट्र अब भी कोई उचित प्रारूप है? इसका उत्तर है नहीं. 21वीं सदी के राष्ट्र 5000 साल पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता में सिंधु नदी के तट पर बसे छोटे आजाद कबीलों जैसे हैं.
सारे मानव आज सूचना, वैज्ञानिक अनुसंधानों और तकनीकी खोजों की एकमात्र वैश्विक नदी के तट पर बसते हैं. यह अस्थिरता के दो प्रकार हैं नदी हमारी समृद्धि का स्रोत है लेकिन यही मानव सभ्यता के समक्ष सबसे बड़ा संकट भी है.
1950 से ही स्पष्ट हो गया था कि परमाणु खतरे से कोई राष्ट्र अकेले अपनी या पूरे विश्व की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता. लोगों को लगता था कि शीत युद्ध एक दिन परमाणु युद्ध में बदल जाएगा और सभ्यता का अंत कर देगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
यह विनाश किसी एक राष्ट्र के प्रयासों के कारण नहीं टला बल्कि पूरी मानव जाति के बुद्धि-विवेक के कारण ऐसा संभव हुआ. फिर भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हम आगे भी ऐसे सूझबूझ से भरे फैसले लेते रहेंगे. जो ईर्ष्यालु राष्ट्रवादी यह चिल्लाते रहते हैं कि, ''मेरा देश, मेरा देश सबसे महत्वपूर्ण, सबसे महान है," उन्हें स्वयं से एक प्रश्न करना चाहिए—अंतरराष्ट्रीय सहयोग से बनी एक मजबूत व्यवस्था के बिना कैसा आपका देश परमाणु युद्ध से अपनी रक्षा कर पाएगा? कर ही नहीं सकता.
दूसरी बड़ी वैश्विक चुनौती पर्यावरण से जुड़ी चुनौती है. हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र को लगातार इस स्तर तक अस्थिर करते जा रहे हैं कि आज हमने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के विध्वंस का खतरा मोल लिया है. यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा तो इस बात की आशंका है कि 50 साल बाद मुंबई में रहना ही असंभव हो जाए. ऐसा दो कारणों से हो सकता है.
या तो हिंद महासागर के जलस्तर में वृद्धि से शहर के बड़े हिस्से पानी में समा जाए या शहर में तापमान का स्तर इस कदर बढ़ जाए कि यहां रहना ही मुश्किल हो जाए. कोई राष्ट्र चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, अकेले अपने बूते इस समस्या से अपना बचाव नहीं कर पाएगा क्योंकि राष्ट्र पर्यावरण के मामले में संप्रभु नहीं हैं.
तकनीकी दुर्घटना की चुनौती संभवतः सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध होगी. आने वाले दशकों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और जैव-इंजीनियरिंग बेशुमार नए अवसरों के साथ अथाह नई समस्याओं के पहाड़ भी खड़े करने वाले हैं.
एक बड़ा उदाहरण है कि एआइ वाले कंप्यूटरों और रोबोट्स से करोड़ों लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जाएगा. हमारे पास करोड़ों ऐसे लोग होंगे जिनका कोई आर्थिक मूल्य नहीं होगा, वे राजनैतिक शक्तियों से विहीन होंगे.
नई तकनीक स्वचालित हथियार प्रणाली और हत्यारे रोबोटों का विकास के रूप में एक और वैश्विक समस्या को जन्म देगी. यह सबसे ज्यादा खतरनाक तकनीकी खोज साबित होगी लेकिन पुनः कोई भी राष्ट्र इस घटना के घटित को अपने बूते पर नहीं रोक सकता क्योंकि विज्ञान-तकनीक पर किसी भी राष्ट्र का एकाधिकार नहीं है.
चार अरब साल से जीवन के मूल नियमों में कोई मौलिक बदलाव नहीं आया है. इससे कोई वास्ता नहीं कि आप अमीबा थे या डायनोसोर, केले का पौधा थे या होमो सेपियंस, आप कार्बन यौगिकों से बने और आपका विकास प्रकृति वैसा होता है जैसा प्रकृति चाहती है. आने वाले दशकों में यह नियम बदल जाएगा.
प्राकृतिक चयन का स्थान विज्ञान ले लेगा. विज्ञान क्रमिक विकास को नियंत्रित करने वाला मुख्य कारक हो जाएगा. अब बादलों (क्लाउड) के उस पार रहने वाले किसी भगवान का बनाया डिजाइन नहीं चलेगा बल्कि उसकी जगह हमारे बनाए आइबीएम क्लाउड, गूगल क्लाउड आदि ले लेंगे.
जीव उत्पति के चार अरब साल के बाद हम पहला अकार्बनिक जीवन स्वरूप विकसित करने की स्थिति में हैं. इस प्रक्रिया में होमो सेपिएंस लुप्त हो सकते हैं. ऐसा इसलिए नहीं होगा कि हम खुद अपने को खत्म कर लेंगे बल्कि इसलिए क्योंकि हम स्वयं में बदलाव को उत्सुक होकर खुद को अप्रगेड करते हुए कुछ नए और मौजूदा रूप से बिल्कुल अलग जीव बन जाएंगे.
किसी भी जैव संरचना से चेतना अलग हो जाएगी अथवा इसके उलट चेतना से बुद्धिमता को अलग होता देखने को मिल सकता है. पृथ्वी पर सुपर इंटेलिजेंट लेकिन चेतनाविहीन ढांचों का प्रभुत्व कायम हो जाएगाः ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम जिनके पास कोई मस्तिष्क, न कोई भावना, न ही कोई मनोभाव होंगे.
इस तरह हम भगवान बनने की प्रक्रिया में प्रवेश कर रहे हैं और बड़ा प्रश्न जो हमारे सामने आता है कि हम इन ईश्वरतुल्य नई शक्तियों का करेंगे क्या? हमें नैतिक दिशा-निर्देशों एवं लक्ष्यों की आवश्यकता है और राष्ट्रवाद हमें अपेक्षित नैतिक दिशा-निर्देश व लक्ष्य नहीं दे सकता. राष्ट्रवाद के सोच की पहुंच केवल क्षेत्रीय संघर्ष के स्तर तक ही है. इसलिए 21 सदीं में अपना अस्तित्व बचाए रखने, फलने-फूलने के लिए मानव सभ्यता को राष्ट्र के प्रति निष्ठा के साथ-साथ वैश्विक समुदाय के प्रति निष्ठा भी दिखानी होगी.
दो देवताओं की कहानी
''संसार में दो प्रकार के देवता हैं और मनुष्य उनमें घालमेल की कोशिश करता रहता है. एक देवता वे हैं जो रहस्यों की दुनिया के स्वामी हैं और जिनके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते. विज्ञान जिस भी चीज के बारे में नहीं जानता, लोग उसे ही देवता बताते हैं. और मैं इस देवता के साथ बहुत खुश हूं.
एक और देवता हैं जो पहले वाले देवता से एकदम उलट हैं और जो हर चीज से जुड़े ठोस नियम सुझाते हैं. इस देवता के बारे में हम जरूरत से ज्यादा जानते हैं—यह देवता स्त्रियों के फैशन पर क्या सोचते हैं, मनुष्यों की यौनिकता, किसे वोट देना चाहिए आदि सब कुछ के बारे में जानते हैं. इस देवता में मेरी कोई श्रद्धा नहीं है.
अगर ब्रह्मांड, ब्लैक होल्स या आकाशगंगाओं में सचमुच ऐसी कोई ताकत मौजूद है जो जीवन के महान रहस्यों के लिए उत्तरदायी है तो मुझे नहीं लगता कि महिलाओं को किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिए, जैसे विषयों को लेकर उस शक्ति को कोई खास परवाह होगी."
अंतर्निहित अस्थिरता और अस्थिरता तिरछ के बीच संबंध क्या है? | इन्व्हेस्टोपियाडिया
अस्थिरता तिरछा हड़ताल की सीमाओं के बीच की विकल्पों के लिए निहित वाष्पशीलता के आकार को संदर्भित करता है, उसी समय की समाप्ति तिथि के विकल्पों के लिए। परिणामस्वरूप आकार अक्सर एक तिरछा या मुस्कुराहट दिखाता है, जहां धन के बाहर विकल्पों के लिए अंतर्निहित अस्थिरता के मूल्यों को स्ट्राइक मूल्य की तुलना में अधिक है जो अंतर्निहित साधन की कीमत के करीब है।
अंतर्निहित अस्थिरता
अंतर्निहित अस्थिरता एक विकल्प के अधीन संपत्ति की अनुमानित अस्थिरता है यह एक विकल्प की कीमत से प्राप्त होता है, और कई विकल्प मूल्य निर्धारण मॉडल जैसे कि ब्लैक-स्कोल्स विधि के इनपुट में से एक है। हालांकि, अंतर्निहित अस्थिरता को सीधे मनाया नहीं जा सकता। इसके बजाय, यह विकल्प मूल्य निर्धारण मॉडल का एक तत्व है जो सूत्र से बाहर होना चाहिए। उच्चतर निहित वाष्पशीलता का परिणाम उच्च विकल्प मूल्यों में होता है।
अंतर्निहित अस्थिरता अनिवार्य रूप से बाज़ार के विश्वास को दिखाती है कि अंतर्निहित अनुबंध की भविष्य की अस्थिरता दोनों ऊपर और नीचे है। यह दिशा की भविष्यवाणी नहीं प्रदान करता है हालांकि, अंतर्निहित परिसंपत्ति की कीमत नीचे जाती है क्योंकि अंतर्निहित अस्थिरता मूल्य बढ़ जाता है। मंदी का बाजार माना जाता है कि ऊपर की ओर बढ़ने वाले लोगों की तुलना में अधिक जोखिम होगा।
व्यापारियों को सस्ते अस्थिरता की खरीद करते समय आम तौर पर उच्च अस्थिरता बेचना चाहते हैं कुछ विकल्प रणनीतियों शुद्ध अस्थिरता नाटकों हैं और किसी परिसंपत्ति की दिशा के विपरीत, अस्थिरता में परिवर्तन पर लाभ की तलाश करना। वास्तव में, यहां तक कि वित्तीय अनुबंध भी होते हैं जो अंतर्निहित अस्थिरता को ट्रैक करते हैं। वालटेटिलिलिटी इंडेक्स (वीआईएक्स) शिकागो बोर्ड ऑफ ऑप्शन एक्सचेंज (सीबीओई) पर वायदा अनुबंध है जो 30-दिन की अस्थिरता की अपेक्षाओं को दर्शाता है वीएक्स की गणना एसएंडपी 500 इंडेक्स के विकल्पों के अंतर्निहित अस्थिरता मूल्यों के आधार पर की जाती है। इसे अक्सर डर इंडेक्स के रूप में जाना जाता है VIX बाज़ार में गिरावट के दौरान बढ़ता जाता है और बाज़ार में उच्च अस्थिरता का प्रतिनिधित्व करता है।
स्काइज़ के प्रकार
विभिन्न प्रकार के अस्थिरता स्काइप हैं स्काइज़ के दो सबसे सामान्य प्रकार आगे हैं और रिवर्स स्काइप हैं।
रिवर्स स्काइप के विकल्प के लिए, उच्च विकल्प स्ट्राइकों की तुलना में कम विकल्प स्ट्राइक पर निहित अस्थिरता अधिक है इस प्रकार की तिरछा अक्सर सूचकांक विकल्पों पर मौजूद होता है, जैसे एसएंडपी 500 सूचकांक पर। इस तिरछा का मुख्य कारण यह है कि बाजार की कीमतों में बाजार की कीमतों में गिरावट की संभावना है, भले ही यह एक दुर्लभ संभावना हो। यह अन्यथा धन के बाहर विकल्पों में से नहीं लगाया जा सकता है
फॉरवर्ड स्काई के विकल्प के लिए, अस्थिरता की अस्थिरता मूल्य स्ट्राइक प्राइस चेन के साथ उच्च अंक पर चढ़ जाता है। निचला विकल्प हमले में, निहित अस्थिरता कम है, जबकि उच्च हड़ताल की कीमतों में यह उच्च है।यह आमतौर पर कमोडिटी बाजारों के लिए आम है, जहां आपूर्ति में कुछ कमी के कारण बड़ी कीमत में बढ़ोतरी की अधिक संभावना है। उदाहरण के लिए, मौसम संबंधी मुद्दों से कुछ वस्तुओं की आपूर्ति नाटकीय रूप से प्रभावित हो सकती है प्रतिकूल मौसम की स्थिति कीमतों में तेजी से बढ़ सकती है बाजार की कीमतों में यह संभावना है, जो निहित अस्थिरता के स्तर से परिलक्षित होता है।
कूपन दर और किसी दिए गए बांड की उत्तलता के बीच के संबंध क्या हैं?
बांड की कूपन दर, इसकी उपज और इसकी उत्तलता के बीच के रिश्ते के बारे में पढ़ते अस्थिरता के दो प्रकार हैं हैं, और क्यों शून्य-कूपन बॉन्ड में सर्वोच्च उत्तलता होती है।
अमेरिकी शेयर की कीमतों और यू.एस. डॉलर के मूल्य के बीच के संबंध क्या हैं?
किसी भी दो चर (या चर के सेट) के बीच संबंध, एक संबंध को सारांशित करता है, दो चर के बीच कोई वास्तविक-विश्व संबंध है या नहीं। सहसंबंध गुणांक हमेशा 1 और +1 के बीच होगा इन दो चरम सीमाओं को सही सहसंबंध माना जाता है।
मुद्रास्फीति और ब्याज दर जोखिम के बीच के संबंध क्या हैं? | इन्वेस्टोपेडिया
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नो मनी फॉर टेरर: आतंक के खिलाफ 18-19 नवंबर को दिल्ली में सजेगा बड़ा मंच, मोदी-शाह होंगे शामिल
आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने से संबंधित तीसरा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 'नो मनी फॉर टेरर' का आयोजन 18 और 19 नवंबर को नई दिल्ली में होगा.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: लव रघुवंशी
Updated on: Nov 15, 2022 | 8:14 PM
गृह मंत्रालय 18 और 19 नवंबर को नई दिल्ली में ‘नो मनी फॉर टेरर’ पर तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है. इस बैठक का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे.बैठक के दोनों दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मौजूद रहेंगे और इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे. इस सम्मेलन का उद्देश्य पेरिस (2018) और मेलबर्न (2019) में अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा आयोजित पिछले दो सम्मेलनों में आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने से संबंधित चर्चाओं को आगे बढ़ाना है.
भारत ने तीन दशकों से अधिक अवधि में कई प्रकार के आतंकवाद और इसके वित्तपोषण का सामना किया है, इसलिए वह इस तरह से प्रभावित राष्ट्रों के दर्द और आघात को समझता है. इस सम्मेलन अस्थिरता के दो प्रकार हैं का आयोजन मोदी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के मुद्दे को महत्व देने के साथ-साथ इस खतरे के खिलाफ उसकी जीरो टॉलरेंस की नीति को दर्शाता है.
कई देश आतंक और उग्रवाद से प्रभावित
इसका इरादा आतंकवाद के वित्तपोषण के सभी आयामों के तकनीकी, कानूनी, विनियामक और सहयोग के पहलुओं पर चर्चा को शामिल करने का भी है. यह सम्मेलन आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने पर केंद्रित अन्य उच्चस्तरीय आधिकारिक और राजनीतिक विचार-विमर्श की गति को भी निर्धारित करने का प्रयास करेगा. वैश्विक स्तर पर विभिन्न देश कई वर्षों से आतंकवाद और उग्रवाद से प्रभावित हैं. अधिकांश मामलों में हिंसा का पैटर्न भिन्न होता है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर लंबे समय तक सशस्त्र सांप्रदायिक संघर्षों के साथ-साथ एक अशांत भू-राजनीतिक वातावरण से उत्पन्न होता है.
इस तरह के संघर्षों का नतीजा अक्सर कुशासन, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक अभाव और बड़े अनियंत्रित क्षेत्र के रूप में सामने आता है. एक आज्ञाकारी राज्य की भागीदारी अक्सर आतंकवाद, विशेष रूप से इसके वित्तपोषण को बढ़ावा देती है.
शांतिप्रिय राष्ट्रों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के मामले में निरंतर सहयोग के लिए एक पुल बनाने में मदद करने हेतु, भारत ने अक्टूबर में दो वैश्विक कार्यक्रमों – दिल्ली में इंटरपोल की वार्षिक आम सभा और मुंबई एवं दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद विरोधी कमेटी के एक विशेष सत्र की मेजबानी की. आगामी ‘नो मनी फॉर टेरर (एनएमएफटी)’ सम्मेलन विभिन्न राष्ट्रों के बीच समझ और सहयोग विकसित करने के हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाएगा.
अवैध खनन मामले में ईडी दफ्तर पहुंचे सीएम हेमंत सोरेन, लगाया साजिश का आरोप
रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अवैध खनन मामले में ED के सामने पेश होने के लिए रांची में एजेंसी के कार्यालय पहुंचे। ईडी कार्यालय जाने से पहेल हेमंत सोरेन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। सीएम सोरेन ने कहा कि आज मुझे ईडी के दफ्तर में जाना है, जैसे कि मुझे समन दिया गया है। मैंने एक पत्र ईडी को भेजा है। ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे पूछताछ के लिए बुलाया गया है।
उन्होंने कहा कि आरोप कहीं से भी सही नहीं लगते। 1000 करोड़ का घोटाला करने के लिए कितने करोड़ का खनन होगा। जांच एजेंसियों को पूरी जांच कर ही आगे बढ़ना चाहिए था। जैसे कारवाई चल रही है, ऐसा लगता है कि हम देश छोड़कर भागने वाले हैं। सरकार को अस्थिर करने का षड़यंत्र कहा जा सकता है, जो हमारी सरकार बनने के बाद से जारी है। हेमंत सोरेन कहा कि मैं अधिकारियों से पूछूंगा कि इस कार्रवाई की वजह क्या है। एक मुख्यमंत्री पर इतना बड़ा आरोप इतने हल्के ढंग से लगाया गया। सीएम ने कहा कि जिस प्रकार मुझे समन किया गया लगता है कि मैं देश छोड़कर भागने वाला हूं।
सोरेन ने आरोप लगाते हुए कहा कि आदिवासियों की भलाई करने वाली उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। साजिशकर्ता राज्य की मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंकने पर आमादा हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि हम आदिवासियों को इतना मजबूत करेंगे कि बाहर से आने वालों को बाहर कर दिया जाएगा।
क्या है मामला?
ये मामला अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ है। साहेबगंज जिले में एक अवैध खनन मामले में सीएम का नाम आया है। ईडी ने मामले में सोरेन के राजनीतिक सहयोगी पंकज मिश्रा और दो अन्य स्थानीय कथित बाहुबली बच्चू यादव और प्रेम प्रकाश को गिरफ्तार किया है। ईडी का कहना है कि झारखंड में अवैध खनन और मनी लॉड्रिंग के मामले में कई छापेमारी हुई हैं। छापेमारी के दौरान हेमंत सोरेन से संबंधित मिले कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद हुए हैं।
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