बाजार तरलता क्या है

Liquidity Risk- लिक्विडिटी रिस्क
क्या होता है लिक्विडिटी रिस्क?
तरलता (Liquidity) किसी फर्म, कंपनी या किसी व्यक्ति विशेष का बिना विनाशकारी नुकसान उठाये अपने ऋणों को भुगतान करने की क्षमता है। इसके विपरीत, लिक्विडिटी रिस्क (Liquidity Risk) किसी निवेश की मार्केटिबिलिटी की कमी से उत्पन्न होता है जिसकी खरीद या बिक्री बिना नुकसान को रोके या उसे कम किये हुए नहीं की जा सकती है। आम तौर पर यह असामान्य रूप से व्यापक बिड-आस्क स्प्रेड्स या लार्ज प्राइस मूवमेंट में प्रदर्शित होता है। निवेशक, मैनेजर या क्रेडिटर लिक्विडिटी माप अनुपात का उपयोग तब करते हैं जब उन्हें किसी संगठन के भीतर जोखिम के स्तर के बारे में निर्णय करना होता है। अगर कोई इंडीविजुअल निवेशक, कंपनी या वित्तीय संस्थान अपनी अल्प अवधि ऋण देनदारियों को पूरा नहीं कर सकता तो इसका अर्थ है वह लिक्विडिटी रिस्क से गुजर रहा है।
लिक्विडिटी रिस्क को समझना
यह एक सामान्य सी बात है कि सिक्योरिटी या इसके इश्युअर का आकार जितना छोटा होगा, लिक्विडिटी रिस्क उतना ही अधिक होगा। 9/11 के हमलों के बाद या 2007 से 2008 के ग्लोबल क्रेडिट संकट के दौरान स्टाॅक्स एवं अन्य सिक्योरिटीज की वैल्यू में गिरावट ने कई बाजार तरलता क्या है निवेशकों को किसी भी कीमत पर अपनी होल्डिंग्स बेचने को प्रेरित किया। एक्जिट करने की इस होड़ के कारण बिड-आस्क स्प्रेड्स और कीमतों में बड़ी गिरावट हुई जिसने मार्केट लिक्विडिटी में और योगदान दिया। खरीदारों की कमी या किसी अक्षम बाजार के कारण निवेशक या एंटिटी बिना पूंजी और आय को छोड़े किसी एसेट को कैश में परिवर्तित करने में अक्षम हो सकते हैं।
वित्तीय संस्थानों में लिक्विडिटी रिस्क
वित्तीय संस्थान उल्लेखनीय मात्रा तक उधार लिए गए धन पर निर्भर करते हैं। इसलिए आम तौर पर यह निर्धारित करने के लिए उनकी जांच की जाती है कि क्या वे बड़ा नुकसान, जो विनाशकारी साबित हो सकता है, उठाए बिना अपनी ऋण देनदारियों को पूरा कर सकते हैं। इसलिए, संस्थानों को अपनी वित्तीय स्थिरता की माप करने के लिए सख्त अनुपालन आवश्यकताओं और स्ट्रेस परीक्षणों का सामना करना पड़ता है। 2008 के आर्थिक संकट के दौरान कई बड़े बैंकों को लिक्विडिटी समस्याओं के कारण दिवालियापन मुद्दों का सामना करना पड़ा या वे इसमें विफल रहे।
बाजार में नकदी की कमी नहीं, बस मौजूदा संसाधनों के सही इस्तेमाल की जरूरत: RBI
आरबीआई ने कहा कि खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त दोबारा से की जा सकती है ताकि व्यवस्था में पर्याप्त तरलता को सुनिश्चित किया जा सके.
नकदी की कमी को लेकर छाई चिंताओं पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि व्यवस्था में नकदी जरूरत से ज्यादा है. बाजार की जरूरतों के हिसाब से उपलब्ध विकल्पों का उपयोग कर टिकाऊ तरलता व्यवस्था को सुनिश्चित किया जाएगा.
पिछले कुछ दिनों में सक्रियता से उठाए गए कदमों के बारे में आरबीआई ने कहा कि 19 सितंबर को उसने खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों का लेन-देन (ओएमओ) किया था. साथ ही तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के सामान्य प्रावधान के अतिरिक्त रेपो के माध्यम से अतिरिक्त तौर पर तरलता के लिए उदार तरीके से जान फूंकने की कोशिश की थी.
आरबीआई ने कहा कि खुले बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त दोबारा से की जा सकती है ताकि व्यवस्था में पर्याप्त तरलता को सुनिश्चित किया जा सके.
केंद्रीय बैंक ने एक बयान में कहा कि 26 सितंबर को रेपो के माध्यम से बैंकों ने रिजर्व बैंक से 1.88 लाख करोड़ रुपये की सुविधा प्राप्त की. परिणाम स्वरूप बाजार तरलता क्या है व्यवस्था में पर्याप्त से अधिक तरलता मौजूद है. रिजर्व बैंक ने घोषणा की कि सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में जरूरी राहत एक अक्तूबर 2018 से प्रभावी होगी. इससे प्रत्येक बैंक की तरलता की क्षमता को मदद मिलनी चाहिए.
आरबीआई ने कहा कि व्यवस्था में टिकाऊ तरलता जरूरतों को पूरा करने के वह तैयार है और विभिन्न उपलब्ध विकल्पों के माध्यम से वह इसे सुनिश्चित करेगा. यह उसके बाजार हालातों और तरलता का लगातार आकलन करने पर निर्भर करेगा.
उल्लेखनीय है कि आईएलएंडएफएस समूह कंपनी की चूक के बाद तरलता के संकट संबंधी चिंताएं जाहिर की जाने लगी थीं.
बाजार में बढ़ी तरलता, जून में विदेशी निवेशकों ने घरेलू बाजारों में डाले 21,235 करोड़ रुपये
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने जून में भारतीय पूंजी बाजारों में शुद्ध रूप से 21,235 करोड़ रुपये बाजार तरलता क्या है डाले हैं। कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के बीच अब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खुल रही है और बाजार में तरलता भी बढ़ी है, जिससे भारतीय बाजारों को लेकर एफपीआई का आकर्षण बढ़ा है।
21,235 करोड़ रुपये रहा शुद्ध निवेश
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार एक से 26 जून के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयरों में 22,893 करोड़ रुपये डाले, लेकिन उन्होंने ऋण या बॉन्ड बाजार से 1,658 करोड़ रुपये की निकासी की। इस तरह उनका शुद्ध निवेश 21,235 करोड़ रुपये रहा।
तीन माह तक बिकवाल बने रहे निवेशक
इससे पहले पिछले लगातार तीन माह तक विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बने रहे। उन्होंने मई में 7,366 करोड़ रुपये, अप्रैल में 15,403 करोड़ रुपये और मार्च में रिकॉर्ड 1.1 लाख करोड़ रुपये की निकासी की।
इस संदर्भ में ग्रो के सह-संस्थापक एवं मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) हर्ष जैन ने कहा कि, 'एफपीआई ने स्मॉल और मिडकैप शेयरों में निवेश बढ़ाया है। इन शेयरों में वे पिछले एक साल से निवेश कर रहे हैं।'
2019 में एफपीआई ने डाले थे 73,276.63 करोड़ रुपये
साल 2019 में एफपीआई ने घरेलू बाजारों (शेयर और ऋण दोनों) में शुद्ध रूप से 73,276.63 करोड़ रुपये डाले थे। बता दें कि जनवरी, जुलाई और अगस्त को छोड़कर एफपीआई साल 2019 के शेष महीनों में शुद्ध लिवाल रहे हैं।
क्या है एफपीआई ?
बता दें कि जब एक अंतरराष्ट्रीय निवेशक, किसी अन्य देश के उद्यम की निष्क्रिय होल्डिंग में निवेश करता है, यानी वित्तीय परिसंपत्ति में निवेश करता है, तो इसे एफपीआई के रूप में जाना जाता है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने जून में भारतीय पूंजी बाजारों में शुद्ध रूप से 21,235 करोड़ रुपये डाले हैं। कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के बीच अब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खुल रही है और बाजार में तरलता भी बढ़ी है, जिससे भारतीय बाजारों को लेकर एफपीआई का आकर्षण बढ़ा है।
21,235 करोड़ रुपये रहा शुद्ध निवेश
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार एक से 26 जून के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयरों में 22,893 करोड़ रुपये डाले, लेकिन उन्होंने ऋण या बॉन्ड बाजार से 1,658 करोड़ रुपये की निकासी की। इस तरह उनका शुद्ध निवेश 21,235 करोड़ रुपये रहा।
तीन माह तक बिकवाल बने रहे निवेशक
इससे पहले पिछले लगातार तीन माह तक विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बने रहे। उन्होंने मई में 7,366 करोड़ रुपये, अप्रैल में 15,403 करोड़ रुपये और मार्च में रिकॉर्ड 1.1 लाख करोड़ रुपये की निकासी की।
इस संदर्भ में ग्रो के सह-संस्थापक एवं मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) हर्ष जैन ने कहा कि, 'एफपीआई ने स्मॉल और मिडकैप शेयरों में निवेश बढ़ाया है। इन शेयरों में वे पिछले एक साल से निवेश कर रहे हैं।'
2019 में एफपीआई ने डाले थे 73,276.63 करोड़ रुपये
साल 2019 में एफपीआई ने घरेलू बाजारों (शेयर और ऋण दोनों) में शुद्ध रूप से 73,276.63 करोड़ रुपये डाले थे। बता दें कि जनवरी, जुलाई और अगस्त को छोड़कर एफपीआई साल 2019 के शेष महीनों में शुद्ध लिवाल रहे हैं।
क्या है एफपीआई ?
बता दें कि जब एक अंतरराष्ट्रीय निवेशक, किसी अन्य देश के उद्यम की निष्क्रिय होल्डिंग में निवेश करता है, यानी वित्तीय परिसंपत्ति में निवेश करता है, तो इसे एफपीआई के रूप में जाना जाता है।
Stock Tips: ऑटो सेक्टर के साथ सीमेंट कंपनियों के शेयर दे सकते हैं रिटर्न, एक्सपर्ट नीरज कुमार की क्या है राय?
Stock Tips Hindi: शेयर बाजार और इकनोमी पर दो दशक से नजर रखने वाले कुमार के मुताबिक पिछले कुछ समय में ऑटो कंपनियों ने अपने वाहनों के दाम में काफी वृद्धि की है, उसके बाद भी कई कंपनियां ऐसी हैं जिनके कारोबार में तेजी आने की उम्मीद बन रही है. नीरज कुमार ने बाजार तरलता क्या है कहा है कि साल 2022 में शेयर बाजार उतार-चढ़ाव भरा रहा है.
Stock Tips: पिछले 2 साल में बहुत बाजार तरलता क्या है से निवेशकों ने शेयर बाजार से अच्छी कमाई की है, लेकिन अब उन्हें शेयरों से मिलने वाले रिटर्न की उम्मीद कम रखने की जरूरत है.
शेयर बाजार और इकनोमी पर दो दशक से नजर रखने वाले कुमार के मुताबिक पिछले कुछ समय में ऑटो कंपनियों ने अपने वाहनों के दाम में काफी वृद्धि की है, उसके बाद भी कई कंपनियां ऐसी हैं जिनके कारोबार में तेजी आने की उम्मीद बन रही है.
नीरज कुमार ने कहा है कि साल 2022 में शेयर बाजार उतार-चढ़ाव भरा रहा है. कई ग्लोबल और घरेलू फैक्टर्स की वजह से शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव जारी है. रूस यूक्रेन युद्ध, सप्लाई चैन में व्यवधान और कमोडिटी के भाव में तेजी की वजह से महंगाई का दबाव बढ़ा है. इस वजह से दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं और विदेशी निवेशक शेयर बाजार से बिकवाली कर रहे हैं.
नीरज कुमार ने कहा है कि पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजार में तेज गिरावट दर्ज की गई है और निवेशकों को छोटी अवधि में शेयर बाजार में और कमजोरी आने की वजह से ध्यान रखने की जरूरत है.
नीरज कुमार ने कहा है कि बैंकिंग एंड फाइनेंशियल, कैपिटल गुड्स, सीमेंट और ऑटो सेक्टर देश की जीडीपी ग्रोथ से ताल मिलाते हुए अच्छी तरक्की कर सकते हैं. भारत में मानसून अच्छा रहने की उम्मीद जताई गई है और इस वजह से चुनिंदा ऑटो कंपनियों के शेयरों में निवेश कर कमाई की जा सकती है.
Liquidity Operation: जरूरत पड़ने पर तरलता संचालन में सुधार करेगा आरबीआई
Liquidity Operation: जरूरत पड़ने पर तरलता संचालन में आरबीआई सुधार करेगा.
Published: September 1, 2021 9:30 AM IST
Liquidity Operation: गवर्नर शक्तिकांत दास ने मंगलवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बाजार तरलता क्या है जरूरत पड़ने पर, समय-समय पर तरलता के संचालन में सुधार करेगा. उन्होंने एफआईएमएमडीए-पीडीएआई वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि रिजर्व बैंक प्रणाली में आरामदायक तरलता की स्थिति बनाए रखने के अपने प्रयास के एक अभिन्न तत्व के रूप में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.
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उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने का प्रयास जारी है, क्योंकि बाजार नियमित समय पर व्यवस्थित हो जाते हैं और कामकाज और तरलता संचालन सामान्य हो जाता है, रिजर्व बैंक समय-समय पर फाइन-ट्यूनिंग संचालन भी करेगा, जैसा कि अप्रत्याशित और एकमुश्त तरलता प्रवाह का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक है, ताकि तरल स्थिति प्रणाली में संतुलन आए और यह समान रूप से विकसित हो.
यह देखते हुए कि सरकारी प्रतिभूतियां एक अलग परिसंपत्ति वर्ग हैं, दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था के समग्र मैक्रो ब्याज दर के माहौल में सरकारी प्रतिभूति बाजार की भूमिका की सराहना करना महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षो में सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार और इससे जुड़े बाजार के बुनियादी ढांचे एक ऐसे चरण में पहुंच गए हैं, जहां इसे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक माना जा सकता है.
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि ये घटनाक्रम अन्य प्रमुख वित्तीय बाजारों जैसे कि ब्याज दर डेरिवेटिव और विदेशी मुद्रा बाजारों के लिए बाजारों को विकसित करने और उदार बनाने के प्रयासों के साथ-साथ विभिन्न बाजारों और बाजार के बुनियादी ढांचे में संबंध बनाने के प्रयासों के साथ हुआ है.
उन्होंने कहा, “हमने देश में वित्तीय बाजारों को विकसित करने में एक लंबा सफर तय किया है, लेकिन यह एक सतत यात्रा है और साथ में हम इसे और भी मजबूत और जीवंत बना सकते हैं.”
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