निवेश और अर्थव्यवस्था

निवेश से जुड़ी उलझन
कारोबार तथा लोगों का आवागमन दोबारा पटरी पर लौटने से लगता है कि महामारी और उसके कारण लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से मांग में आई कमी से उत्पन्न स्थिति बीते एक वर्ष के दौरान काफी दुरुस्त हो गई है। इससे यह उम्मीद भी पैदा हुई कि अर्थव्यवस्था में निजी निवेश में सुधार होगा और वृद्धि में सुधार को भी मजबूती मिलेगी। हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की बात करें तो महामारी के आगमन के पहले से ही वह निजी निवेश की कमी की समस्या से जूझ रही थी। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में सकल स्थायी पूंजी निर्माण यानी जीएफसीएफ कभी उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया जिस स्तर पर वह 2000 के दशक के तेज वृद्धि वाले वर्षों में देखा गया था। परंतु इस रुझान में स्पष्ट सुधार तब देखने को मिला जबकि वास्तविक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 2022-23 की पहली तिमाही में 34.7 फीसदी हो गई जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में यह केवल 32.8 फीसदी थी। कुछ लोगों ने आशा जताई थी कि यह सुधार निजी मांग में हुई बढ़ोतरी की वजह से था। ऐसा इसलिए कि अंतिम निजी खपत की जीडीपी में हिस्सेदारी की बात करें तो वह भी पहली तिमाही में महामारी के पहले वाली तिमाही की तुलना में तकरीबन 10 प्रतिशत अधिक थी। इसके बावजूद एक सहज स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि जीडीपी निवेश और अर्थव्यवस्था के हिस्से के रूप में सरकारी व्यय में गिरावट को लेकर यह प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।
निजी मांग का गणित काफी अहम है क्योंकि जब तक कंपनियों को अर्थव्यवस्था में मांग की वापसी नहीं नजर आती है तब तक वे भी निवेश के अहम प्रयास नहीं करतीं। इसके अलावा घरेलू मांग की वास्तविक राह को लेकर आगे दिख रही अनिश्चितता की बात करें तो यह स्पष्ट है कि वैश्विक वृद्धि के सामने भी तमाम विपरीत चुनौतियां रहेंगी। महामारी के दौरान आपूर्ति क्षेत्र की बाधाओं के कारण जिस तरह तैयार माल के भंडार बन गए थे, सबसे पहले उनको निपटाना होगा। कई बड़े कारोबारी ब्लॉक अभी भी महामारी के पहले जैसा आयात नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा वृद्धि अनुमानों में कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से इस बात की काफी संभावना है कि भविष्य की वैश्विक मांग समय पर न सुधर सके और शायद वह उस स्तर तक न आ सके जैसा कि भारतीय निर्यातक चाहते हैं। निवेश और अर्थव्यवस्था उम्मीद है कि अनुमान से कम मांग का असर कीमतों पर भी पड़ेगा और वैश्विक आय में कमी आएगी। ऐसे में कंपनियों को निवेश का प्रोत्साहन कहां से मिलेगा।
सरकार वृद्धि में सुधार के लिए निजी निवेश के महत्त्व को समझती है। उसे यह भी पता है कि सरकारी व्यय और निवेश की बदौलत वृद्धि को बहुत लंबे समय तक बढ़ावा नहीं दे सकती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में उद्योगपतियों से पूछा कि आखिर क्यों कॉर्पोरेट करों में कमी करने और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना यानी पीएलआई समेत विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत के बाद भी निजी क्षेत्र का निवेश कम था। इस सवाल के जवाब का एक हिस्सा तो यह है कि निस्संदेह इसकी एक वजह अनिश्चितता भी है। बहरहाल, विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी का इस्तेमाल अब पहले की तुलना में बेहतर हो रहा है। 2021-22 की अंतिम तिमाही में यह 75 प्रतिशत का स्तर पार कर गया जिससे उम्मीद पैदा होती है। बैंक तथा कॉर्पोरेट घरानों की बैलेंस शीट में भी बीती कुछ तिमाहियों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिल रहा है। मध्यम से लंबी अवधि में निजी निवेश में भी सुधार के लिए अनुकूल माहौल बन रहा है। अगर ऋण का स्तर और क्षमता का इस्तेमाल दोनों अगली कुछ तिमाहियों तक इसी रुझान में बने रहे तो यह सुधार दिख सकता है। घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था में टिकाऊ वृद्धि का अनुमानित स्तर अब सबसे अहम कारक होगा। सरकार को अब नीतिगत निश्चिंतता का माहौल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा, नवंबर के पहले हफ्ते में निवेश किए 15,280 करोड़ रुपए
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की तरफ से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी को लेकर नरम रहने की उम्मीद में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों में जमकर खरीदारी की.
दो महीनों तक भारतीय बाजारों से निकासी करने वाले विदेशी निवेशकों (FPI) ने नवंबर के पहले हफ्ते में जोरदार वापसी करते हुए घरेलू इक्विटी बाजारों में 15,280 करोड़ रुपए मूल्य के शेयरों की खरीद की है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की तरफ से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी को लेकर नरम रहने की उम्मीद में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों में जमकर खरीदारी की.
कोटक सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च (रिटेल) प्रमुख श्रीकांत चौहान ने कहा कि फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) का प्रवाह निकट समय में मौद्रिक सख्ती को देखते हुए उतार-चढ़ाव से भरा रह सकता है. इसके साथ ही जियो-पॉलिटिकल चिंताएं भी एक कारक बन सकती है.
लगातार दो महीने निकासी के बाद की खरीदारी
डिपॉजिटरी से मिले आंकड़ों के मुताबिक, FPI ने 1 से 4 नवंबर के बीच भारतीय इक्विटी बाजारों में 15,280 करोड़ रुपए का निवेश किया. इसके पहले एफपीआई ने अक्टूबर में भारतीय बाजारों से 8 करोड़ रुपए और सितंबर में 7,624 करोड़ रुपए निकासी की थी.
इसके पहले FPI ने अगस्त में 51,200 करोड़ रुपए और जुलाई में करीब 5,000 करोड़ रुपए मूल्य के शेयरों की खरीदारी की थी. उसके पहले के 9 महीनों तक एफपीआई लगातार बिकवाल बने हुए थे. इस तरह इस साल अब तक एफपीआई भारतीय बाजारों से कुल 1.53 लाख करोड़ रुपए की निकासी कर चुके हैं.
एक्सपर्ट्स की राय
सैंक्टम वेल्थ के प्रोडक्ट एंड सॉल्यूशंस को-हेड मनीष जेलोका ने कहा, नवंबर के पहले हफ्ते में FPI की तगड़ी मौजूदगी का कारण फेडरल रिजर्व की तरफ से नरमी दिखाने की उम्मीद रहा है.
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीन इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर के मजबूत होने के समय में भी भारतीय बाजार में FPI का खरीदारी करना एक महत्वपूर्ण पहलू है. यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एफपीआई के विश्वास को दर्शाता है.
भारत में निवेश करें उद्योग : गोयल
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को उद्योगों का भारत में निवेश करने का आह्वान किया। बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री द्वारा आयोजित भारत आर्थिक सम्मेलन में गोयल ने कहा, 'भारत को दुनियाभर में अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है और विश्व एक ठोस वैकल्पिक विनिर्माण आधार प्रदान करने के लिए भारत की ओर देख रहा है, हमें पहल करनी चाहिए और विश्वास के भारत में निवेश करना चाहिए।'
हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय कंपनियों से पूछा था निवेश और अर्थव्यवस्था कि उन्हें यहां निवेश करने से क्या रोक रहा है, उसके बाद गोयल का बयान आया है।
गोयल ने उन क्षेत्रों को रेखांकित किया जहां उद्योग भारत के आर्थिक विकास में तेजी लाने में मदद कर सकता है और टियर-2 व टियर-3 जैसे नए शहरों में निवेश की सिफारिश की, जहां उनका मानना है कि ये भारतीय अर्थव्यवस्था के अगले बड़े कारक होंगे। साथ ही मंत्री ने कहा, 'मैं आपसे उभरती प्रौद्योगिकियों, स्वदेशीकरण, नवाचार और अनुसंधान एवं विकास में निवेश के लिए कहूंगा।'मंत्री ने यह भी कहा कि एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए और सरकार और उद्योग के बीच बातचीत भी बढ़नी चाहिए।
उन्होंने कहा, 'मैं आपसे हमारी मुक्त व्यापार समझौता वार्ता में व्यापक रूप से भाग लेने का आग्रह करूंगा, जिसके लिए हम नियमित रूप से निर्यात संवर्धन परिषदों, क्षेत्रीय उद्योग संघों और सभी संबंधित पक्षों के साथ परामर्श कर रहे हैं ताकि हमें अपनी बातचीत को बेहतर बनाने और आप सभी के लिए एक अच्छा सौदा प्राप्त करने में मदद मिल सके।'गोयल ने कहा कि अगले 25 साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे उज्ज्वल चरण होगा।
उन्होंने कहा, '130 करोड़ भारतीयों के सामूहिक प्रयास से हम निश्चित रूप से 2047 तक 30 लाख करोड़ डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद तक पहुंच सकते हैं, जब हम स्वतंत्रता के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाएंगे और दुनिया के लिए भारत के विकास की कहानी लिखेंगे।'
भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ने लगा विदेशी निवेशकों का भरोसा; लेकिन जोखिम भी बरकरार, क्या कह रहे सरकार के आंकड़े
देश की भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेश और अर्थव्यवस्था निवेशकों के बढ़ते विश्वास के चलते हालात बेहतर होने के संकेत हैं। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। जानें क्या है मौजूदा हालात.
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार की रिपोर्ट बतलाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ने लगा है। हालांकि वैश्विक उथल पुथल का दौर अभी थमा नहीं है। चीन की अर्थव्यवस्था भी जद्दोजहद कर रही है। अन्य पड़ोसी मुल्कों में भी हालात अच्छे नहीं हैं। इसका प्रभाव वैश्विक रूप से पड़ने की आशंकाएं हैं। यही नहीं विकसित देश भी अपनी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए सख्त फैसले ले सकते हैं। इससे जोखिम भी बना हुआ है। पेश है मौजूदा तस्वीर बयां करती एक रिपोर्ट.
एफपीआइ की तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश
वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा फिर से बढ़ने लगा है और अगस्त महीने की 12 तारीख तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) की तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश किया जा चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 11.6 अरब डालर का विदेशी निवेश किया गया था।
वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल
फरवरी आखिर में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल होने से निवेशक उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से अपने पैसे निकालने लगे थे और भारत भी इससे प्रभावित हुआ था। वहीं, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकार का पूंजीगत व्यय 1.75 लाख करोड़ तक पहुंच गया जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 57 प्रतिशत अधिक है।
विकास और महंगाई दोनों मोर्चों पर कम हुई चिंता
केंद्रीय वित्त मंत्रालय की तरफ से शुक्रवार को जारी जुलाई माह की आर्थिक रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के लिए अब विकास और महंगाई दोनों को लेकर चिंता कम हुई है। इसकी मुख्य वजह है कि गत जून से अगस्त माह में कच्चे तेल के दाम में अच्छी गिरावट हुई है। खुदरा महंगाई दर सात प्रतिशत से नीचे आ गई है और राजस्व संग्रह में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
प्रभावित हो सकती है तेल और गैस की सप्लाई
हालांकि रिपोर्ट में कहा गया निवेश और अर्थव्यवस्था है कि वैश्विक वजहों से अब भी जोखिम बरकरार है। सर्दी के मौसम में कच्चे तेल और गैस की सप्लाई प्रभावित हो सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है और इसका प्रभाव वैश्विक रूप से हो सकता है। दूसरी तरफ विकसित देश अपनी महंगाई को दो से तीन प्रतिशत तक कम करने के लिए ब्याज दरों को और बढ़ा सकते हैं जिससे आर्थिक विकास और कारपोरेट मुनाफा प्रभावित हो सकता है।